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कर्म मल से मुक्त आत्मा परमात्मा है।
सकल सिद्धि उनमें बसे, सर्व लब्धि इन मांहि ।
केतिक आज हुं संपजे, केतिक तो अब नांहि ।। ६८ ॥ अर्थ :-इन पांचों बीजों के संचार से अनहद की जो ध्वनी होती है उसके निर्गम भेद को कोई विरला योगी ही जानता है-६६
इन बीजों के वर्णमात्र कमल-कमल स्थित जानना चाहिए । इन सबके भिन्न-भिन्न गुण शास्त्रों से जान लेना चाहिए-६७ . .
सब प्रकार की सिद्धियां तथा सर्व प्रकार की लब्धियां इनमें वास करती हैं। जिनमें से कुछ तो आजकल भी प्राप्त हो सकती हैं तथा कुंछ आजकल
१३-सिद्धियां आठ हैं :अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, वशिता, प्राकाम्य, इशिता, प्राप्ति ।
(१) अणिमा-यह सिद्धि प्राप्त होने पर अपने आपको जितना छोटा चाहे बना सकता है, अदृश्य भी हो सकता है । ऐसी शक्ति को अणिमा सिद्धि कहते हैं।
(२) महिमा-जितना बड़ा होना चाहे उतना शरीर बढ़ा सकता है। ऐसी शक्ति को महिमा कहते हैं ।
(३) लघिमा-~-फूल के समान हल्का होने की शक्ति । (४) गरिमा -- जितना भारी होना चाहे उतना भारी होने की शक्ति । (५) वशिता--जिसे वश करना चाहे उसे वश करने की शक्ति ।
(६) प्राकाम्य-ऐसी शक्ति जिससे जगत में जो कार्य करना चाहे उसमें सफल हो।
(७) इशिता-सबको अपनी आज्ञा में चलाने की शक्ति । (८) प्राप्ति-जैसा चाहे वैसा रूप परिवर्तन करने की शक्ति । १४-लब्धियां २८ हैं :
(१) ग्रामौषधि, (२) विप्रौषधि, (३) खेलौषधि, (४) जलौषधि, (५) सर्वोषधि, (६) संभिन्न श्रोता,(७) अवधि, (८) मन: पर्याय, (६) विपुलमाते, (१०) चारण लब्धि, (११) आशिविष, (१२) केवल लब्धि, (१३) गणधर लब्धि, (१४) पूर्वधर लब्धि, (१५) अरिहंत लब्धि, (१६) चक्रवति लब्धि, (१७) बलदेव लब्धि, (१८) वासुदेव लब्धि, (१६) अमृतश्राव, (२०) कोष्ठ, (२१) पादानुसारी, (२२) बीज वृद्धि (२३) तेजोलेश्या, (२४) आहारक, (२५) शीतलेश्या, (२६) वक्रिय, (२७) अक्षीणमहानस, (२८) पुलाक लब्धि ।
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