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________________ [१६] माता से सामग्री क्लेशप्रद एवं पद्य ० ५७ में आणावास से सात भेदों- नाम कह पाएं है पानी श्रादि योगाचार्यों ने मोक्ष साधन के लिए प्राणायाम को उपयोगी बतलाया है पर वास्तव में प्राणायाम मोक्ष साधन रूप ध्यान में उपयोगी नहीं है इस बात की पुष्टि इस ग्रन्थ के कर्त्ता भी आगे करेंगे। तो भी शरीर निरोगता तथा कालज्ञानादि में उपयोगी है । इसलिए यहां प्राणायाम का स्वरूप कहते हैं । आसन जय करने के बाद ध्यान सिद्धि के लिए पांतजली ने प्रारणायाम का आश्रय लिया है क्योंकि प्राणायाम करने के बिना मन तथा पवन को जय नहीं किया जा सकता । प्रश्न - प्रारणायाम से पवन का जय तो हो सकता है पर मन का जय कैसे हो सकता है ? उत्तर - मन जिस स्थान में है वहां पवन है तथा जहां पवन है वहां मन है । इसलिए समान क्रिया वाले मन और पवन दूध और पानी के समान इकट्ठे मिले हुए रहते हैं । अर्थात- मन तथा पवन की क्रिया और स्थान एक सरीखा है । शरीर के कोई भी भाग पर मन को रोकेंगे तो वहां अवश्य पवन का भी खटक-खटक शब्द मालूम होगा । मन को किसी भी भाग पर रोकना अर्थात उपयोग रखकर उस समय उसी भाग पर देखते रहना ऐसा करने से दूसरे किसी भी विचार सम्बन्धी मन की क्रिया मन्द पड़ेगी और जिस जगह मन को रोका गया है वहां उपयोग की जागृति होने से अन्य विचार नहीं प्रांते पर उपयोग की जागृति तक वहां ही मन रुका रहेगा और पवन भी वहां ही खटक-खटक शब्द करता हुआ श्रथवा दूसरे प्रकार से भी वहीं है ऐसा अनुभव होगा । प्राणायाम का लक्षरण - श्वास, प्रश्वास की गति, उसका आयाम विच्छेद अवरोध करना प्रारणायाम है। बाहर की वायु को भीतर लेना श्वास है और भीतर के वायु को बाहर निकालना प्रश्वास (उच्छवास) कहलाता है । प्राणायाम के सात भेदों की व्याख्या अर्थ- - १ – पूरक - शरीर रूपी कोठे में अथवा कुम्भ (घड़े) में नथनों द्वारा खैंच लिया हुआ बाहर के वायु रूपी पानी को भरना । अर्थात् शरीर में नथनों द्वारा वायु का भरना "पूरक" कहलाता है । छाती, फेफड़े, पेट आदि भागों को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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