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________________ Hiसाधनहीन माल मिष्ट कार्य को सिखानहीं करमा अर्थसौम्य (शीतल और स्थिर) कार्यों को चन्द्र स्वर में करना शुभ है, क्रूर और चर कार्यों को सूर्य स्वर शुभ है । जब दोनों स्वर समान चलते हों उसै सुर्खमना स्वर कहते हैं । इस स्वर में प्रभु भजन और ध्यान के सिवाय. अन्य कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस स्वर में किसी कार्य को करने से वह निष्फल होता है तथा उससे क्लेश भी उत्पन्न होता है-१७-१८ (दोहा) चन्द्र चलत कीजे सदा, थिर कारज सुरभाल। . . .. चर कास्न सूरज चलत; सिद्धि होय तत्काल ॥१६॥ कृष्ण पक्ष स्वामी रवि, शुक्ल पक्ष पति चन्द । :: तिथि भाग इन कालहि, कारज करत आनन्द ॥२०॥ कृष्ण पक्ष की तीन तिथि, प्रथम रवि की जान । तीन शशि पुनि तीन रविं, इन अनुक्रम पहिचान ॥२१॥ शुक्ल पक्ष की तीन तिथि, चन्द्र तणी कह मीत । 'फुनि रवि फुनि शशि फुनि रवि यह गणना की रीति ॥२२॥ अर्थ-इसलिए चंद्र स्वर के चलते समय शीतल और स्थिर कार्यों को तथा सूर्य स्वर के चलते समय क्रूर और चर कार्यों को करना चाहिए । क्योंकि ऐसा करने से कार्य की सिद्धि तत्काल होती है-१६ . कृष्ण (वदि) पक्ष का स्वामी सूर्य है और शुक्ल (सुदि) पक्ष का स्वामी चंद्र है। इसलिए तिथियों के विभाग (हिसाब) से उस-उस काल में कार्य करने से आनन्द की प्राप्ति होती है-२० ..... चन्द्रो समस्तु विज्ञ यो रविस्तु विषमं सदा । - ..... चन्द्रः स्त्रीः पुरुष सूर्यः चन्द्रो गोरोऽसितो रविः ॥१६॥ .. अर्थ-चन्द्र सम है, रवि विषम है, चन्द्र स्त्री है, सूर्य पुरुष है, चन्द्र गौर वर्ण है, सूर्य प्रसित (काला) है। __सुखमना नाड़ी में अग्नि का वास है, काल रूपिणी है, बिष रूप है और सर्व कार्यों को नाश करने वाली है इसलिए इस स्वर में कोई कार्य नहीं करना शीतले और स्थिर कार्य-देखें पद्य नं० १९३ से २०४ कर और चर कार्य-देखें पद्य नं० २०५ से २१३ . .......... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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