SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमत्तको सब ओर भय रहता है । अप्रम भय नहीं। वैसे ही मुझे भी मिथ्यात्व रूप दुर्गन्ध को दूर कर अपने सत्य सुन्दरता और उत्तम आचरण की सुगन्ध के कारण परमार रहने का वल प्राप्त हो । ४ - चौथी - धूप पूजा में सुगन्धित धूप परमात्मा के सामने खेते हुए यह भावना करनी चाहिए कि धूप जैसे जलते हुए भी वातावरण को शुद्ध बना कर सुगन्ध ही सुगन्ध फैला देता है वैसे हो - हे प्रभो ! मुझे भी ऐसा बल मिले कि मैं पूर्व कर्मों के योग से विविध ताप में जलते हुए भी श्रात्म जागृति की शक्ति द्वारा आस-पास के लोगों में तथा विरोधी जीवों के हृदयों में शांति का वातावरण फैला सकूं एवं शील की सुगन्धि से सबके चित्त प्रसन्न कर सकूं । ५ - पांचवीं - दीप पूजा दीपक प्रगटा (जला ) कर मन में भावना करनी चाहिए कि, हे प्रभो ! आप सदा केवलज्ञान से प्रकाशित हैं । मेरे हृदय में भी आप के प्रताप से - अज्ञानान्धकार दूर हो, मलिन वासनाएं नष्ट हों तथा सदा के लिए मेरे अन्तःकरण में ज्ञान की ज्योति जगमगाती रहे । ६ - छठी प्रक्षत पूजा में मन से चावलं का साथिया ( स्वस्तिक) बनाना चाहिए । उस समय ऐसी भावना करनी चाहिए कि इन चार टेढ़ी पंखड़ियों की तरह चार गतियां भी टेढ़ी हैं, उन्हें हे प्रभो ! तू दूर कर । मैंने उनमें बहुत परिभ्रमण किया है । अब मैं इनसे घबराता हूं ! इस शरीर रूपी छिलके को दूर कर चावल की तरह अखंड सौर उज्ज्वल आत्म-स्वरूप प्रकट करने का मुझे बल दे । - ७ – सातवीं - नैवेद्य पूजा में विविध प्रकार का नैवेद्य (मिठाई) प्रभु के सामने रखकर ऐसी भावना करना कि - हे प्रभो ! इन पदार्थों को मैंने अनेक बार खाया है, तो भी तृप्ति नहीं हुई । मैं निरन्तर आत्मा के आनन्द में ही तृप्त रहूं इसलिए मुझे अनाहारी पद प्राप्त करने का बल दे । फल प्रभु के साम कर ८ - आठवीं-फल पूजा में विविध प्रकार के इस प्रकार भावना करनी चाहिये कि हे प्रभो ! मैं इन फों को प्राप्त करके अपनी आत्मा को भूल गया हूं । मुझे ऐसा फल हो कि जिसके For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy