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________________ पशुता के विचारों से पशुत्व प्राप्त होता है । [२६१ मान होता है। .. अब दूसरा दृष्टांत सुनो कि जैसे कुम्भकार दण्ड से चक्र को घुमाता है और घुमाकर दण्ड को निकाल लेता है, परन्तु चक्र फिरता ही रहता है, वैसे ही जब कर्म रूपी दण्ड से जीव रूपी चाक फिरता था, अब कर्म-रूपी दण्ड' अलग होने पर भी चक्र की तरह फिर कर सिद्धक्षेत्र में शांत हो जाता है । ___अब इस जगह कोई यह प्रश्न करे कि जीव को हलका होने से या चक्र-न्याय से ऊपर जाने की गति है तो वह सिद्धक्षेत्र में ही क्यों ठहरता है, आगे क्यों नहीं जाता है ? ____ हे देवानुप्रिय ! हलका होने से जीव में ऊंचे जाने का गुण नहीं है, क्योकि जैसे तूम्बी जल के ऊपर रहकर फिर ऊंची नहीं जा सकती और चक्र भी थोड़ी सी देर चलकर ठहर जाता है, वैसे ही जीव को जानों, विवेक बिना बुद्धि का विकल्प मत करो, दृष्टांत का एक अंश मानो, सब अंश लेकर झगड़ा मत करो, वचन को सुनकर विवेक सहित बुद्धि से विचार कर अपने चित्त में विश्वास लाओ। ___ दूसरा समाधान है कि चौदह राज के बाहर अलोकाकाश में धर्मा-स्तिकाय नहीं है, जिससे जीव आगे को जा सके। इसलिए चौदह राजलोक के अन्त में रह जाता है, क्योंकि इन चौदह राज में धर्मास्तिकाय है, इस धर्मास्तिकाय के होने से ही चौदह राज में जीव व पुद्गल फिरते है । धर्मास्तिकाय के साहाय (मदद) के बिना कोई फिर नहीं सकता। जैसे जल में चलने वाली मछली जल में जिधर इच्छा करे उधर चली जाती है, उस मछली को जल की सहायता है, परन्तु जल उसको प्रेरणा नहीं करता, केवल चलने में साहाय देता है और वह मछली जल के बिना स्थल में इच्छापूर्वक कदापि भ्रमण नहीं कर सकती, यद्यपि स्थल उस मछली को पकड़े भी नहीं रखता है। वैसे ही जीव और पुद्गल को भी जानो।... प्रश्न-आपने योगाभ्यास का वर्णन तो किया, परन्तु एक बात का निर्णय न हुआ। हम सुनते हैं कि, योगी आठ बातों को अपने योग से एक समय में करता है, उसको अष्टावधान भी कहते हैं । वे योगी शतरंज का खेलना, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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