________________
दुःखी हो चाहे सुखी हो मित्र की मित्र ही याति है। समाधि करते हैं वह पिपीलिका समाधि के अन्तर्गत होती है । दर्शक भेद हैं, जिनका थोड़ा सा उल्लेख करना यहां आवश्यक मालूम होता है
वेदान्ती लोग अद्वैत को ही सिद्ध अर्थात् एक पदार्थ मानते हैं । सांख्य मत प्रकृति और पुरुष और पुरुषों मैं भी नानापन, इस रीति से दो पदार्थ मानता है और लोग बन्धन अर्थात् माया से छूट जाना उसी का नाम मोक्ष मानते हैं, परन्तु इन दोनों में इतना विशेष है, कि सांख्य मतवाला तो प्रकृति से पथक हो जाना, उसी को मोक्ष कहता है और वेदान्ती माया से छूटकर ब्रह्म में एक हो जाना, उसी को मोक्ष कहता है । सो वेदांत में दो भेद हैं; १ पूर्व मीमांसा २ उत्तर मीमांसा । पूर्व मीमासा तो केवल कर्म को ही अंगीकार करता है और उत्तर मीमांसा में भी चार सम्प्रदाय हैं । नैयायिक सोलह पदार्थ मानता है,
और २१ गुण के ध्वंस को ही मोक्ष मानता है । जैसे जड़ समाधि में जड़ समान होता है, वैसे जड़ हो जाना ही इसके मत में मोक्ष है। वैशेषिक छः पदार्थ मानता है और सब नैयायिक की तरह जानो। इन नैयायिक और वैशेषिक वालों के बड़े-बड़े ग्रन्थ हैं, सो पदार्थ निर्णय में हैं, हमने तो नाम मात्र कहा है।
बौद्धमत वाला चार पदार्थ मानता है, सो उसके कई भेद हैं जैसे क्षणिकवादी, शून्यवादी आदि और सब दुःखों से छूट जाना ही इनके मत में मोक्ष है। __ जैनी लोग मुख्य तो दो ही पदार्थ मानते हैं, १ जीव, २ अजीव । और ८ कर्मों का नाश करके सिद्ध-शिला के ऊपर जाना उसको मोक्ष मानते हैं । सो ऊपर लिखे सर्व मतों के अनेक भेद हो रहे हैं। इन्होंमें कोई तो सृष्टि का कर्ता मानता है, कोई नहीं मानता है। ऐसे ही कोई किसी पदार्थ को मानता है और कोई किसी पदार्थ को नहीं मानता । सो पदार्थ मानने, न मानने के ऊपर अनेक ग्रन्थ संस्कृत आदि भाषाओं में रचे हुए हैं। इन शास्त्रों में प्रमाण वे देकर अपने-अपने पदार्थ सिद्ध करते हैं। गुरु ने मुझे सर्वज्ञ वीतराग के स्याद्वाद धर्म पर दृढ़ कराया, दुःखगभित मोहगंभित वैराग्य वालों ने जैन धर्म में बखेड़ा मचाया, इस कारण से मेरे आनन्द में विघ्न आया' चिदानन्द नाम पाकर अपनी हंसी कराया। . .
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org