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________________ सत्य वाणी धर्मरूप वृक्ष के पुष्प है, फक है। लक्ष्य का वर्णन लक्ष्य वह है कि श्री वीतराग सर्वज्ञदेव की प्रतिमा को यथावत् बहुमान से देखकर उस लक्ष्य के अनुसार अपने हृदय कमल' के ऊपर जो लक्ष्य है, उसको अभेद करके जानना, व देखना, इसी के वास्ते श्री वीतराग सर्वज्ञदेव ने दो निक्षेपों नाम, स्थापना से ही भव्य जीव का उद्धार बताया है, तीर्थकरों का द्रव्यभाव किसी जीव के काम न आया। क्योंकि द्रव्य और भाव निक्षेपा दिखलाई नहीं देते । इस प्रकार लक्ष्य का वर्णन करने के बाद अब भावना का स्वरूप बतलाते हैं। ये भावना चार हैं, १. मैत्री भावना २. प्रमोद भावना, ३. मध्यस्थ भावना ४. करुणा भावना। १. मैत्री भावना सब जीव मेरे मित्र हैं, किसी का बुरा न हो, अर्थात् किसी का बुरा न बिचारना, और अपने समान जानकर मित्रता रखना, यह मैत्री भावना है। . २. प्रमोद भावना दूसरे गुण जिनको देखकर, उनके गुणों के ऊपर राग प्रकट करना, उस राग से जो अपने चित्त में आनन्द होता है, उनके समान गुणी बनने की उत्कंठा होती है उसी का नाम प्रमोद भावना है। ३. मध्यस्थ भावना मध्यस्थ भावना यह है, कि जो अपने को माने, पूजे, भक्ति प्रादि करे और अन्य कोई अपनी निन्दा करे, न मान करे, न पूजन-भक्ति करे, उन दोनों के ऊपर मध्यस्थ रहे अर्थात् समान भाव रखे। यदि किसी मिथ्यात्वी पर राग नहीं, तो द्वेष भी न करना चाहिए, क्योंकि जो उत्तम पुरुष हैं, उनको हिंसादि करने वाले जीवों पर भी करुणा उत्पन्न होती है, उस करुणा के बल से उपदेश देते हैं, उस उपदेश से जो जीव-हिंसादि छोड़कर अच्छे मार्ग पर आवे, तब तो उनको शुद्ध मार्ग दिखलाना, कदाचित मार्ग में न आवे, तो उनके ऊपर द्वेष भी न करना, अपने दिल में ऐसा विचारना कि यह जीव अज्ञान है, और इसके कर्म परिणाम ऐसा ही है। ऐसा जो भाव उसका नाम मध्यस्थ भावना हैं।... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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