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________________ पाप ही अन्धकार है । समानता ही लगा कि पांच हज़ार रुपया इस ब्राह्मण को दे दो, मैं तुम्हारा उसी समय सेठ ने उस ब्राह्मण को पांच हज़ार रुपया देकर बिदा जब सेठ उस बंदर से काम कराने लगा तब बंदर भी आज्ञा के अनुसार चलने लगा, तत्काल उस काम को करके आने लगा और दूसरे काम की इजाजत मांगने लगा । इस प्रकार सेठजी ने दो तीन दिन काम चलाया । परन्तु अन्त में परेशान होकर अपने चित्त में विचारने लगा, कि मैंने बन्दर क्या मोल लिया अपना काल मोल लिया । इस प्रकार विचार करता हुआ उस बन्दर को बैठा कर अपने घर चला गया और घर में बैठ कर अपना प्राण बचाने का विचार करने लगा, कि इस बन्दर से प्रारण कैसे बचाऊं, किस जगह जाऊं, क्या उपाय लगाऊं इत्यादि सोच में बैठा हुआ विचार कर रहा था । उसी समय कोई ज्ञानी गुरु परोपकारी भिक्षा के वास्ते भ्रमरण करते हुए उसके घर चले आये, और उस सेठ को देखकर कहने लगे कि हे देवानुप्रिय ! ऐसी तुझको क्या चिन्ता है जो उग्र सोच में बैठा हुआ है ? तब वह सेठ खड़ा होकर गुरु महाराज को प्रणाम करके प्रार्थना करने लगा, कि हे स्वामिन् ! मैंने एक बन्दर मोल लिया था, वह बन्दर इतना चंचल और ऐसी मीठी-मीठी बातें करता था, कि उसको देखते ही मेरा चित्त उस पर मोहित हो गया । तब मैंने उसके मालिक से कीमत पूछी । उस समय बन्दर बेचने वाला कहने लगा, कि मैं इसकी कीमत नहीं कह सकता । यदि तुमको लेना हो तो इसी बन्दर से ही पूछो, यह बन्दर प्राप अपनी कीमत कहेगा । जब मैंने बन्दर से कीमत पूछी, कि तेरी क्या कीमत है ? उस समय वह बन्दर कहने लगा कि हे सेठ ! पहले मेरी एक बात की प्रतिज्ञा करो, उसके बाद कीमत पूछना । जब मैंने कहा कि हे बन्दर ? किस बात का इकरार कराता है ? तब बन्दर कहने लगा कि काम सदा करता रहूंगा, कभी निकम्मा न रहूंना, जो तुम मुझको काम न बताओगे, तो मैं तुम्हारा भक्षरण कर लूंगा । पहले इस प्रतिज्ञा को मंजूर करो तो मैं अपनी कीमत कहूं | जब मैंने इस बात को सुना, तब दिल में सोचा कि मेरे यहां हजारों For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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