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________________ २] जो स्वयं को मेमाता है वह समग्र संसार को नमा लेता है। "श्लोक में लिखी हुई रीति के अनुसार वीर्य के आकर्षण करने का अभ्यास करे। जब वीर्य का आकर्षण करना सिद्ध हो जाय, तब वज्रोली मुद्रा सिद्ध होती है। जिस मनुष्य को खेचरी मुद्रा, और प्राण जय यह दोनों सिद्ध हो उसको वज्रोली मुद्रा सिद्ध होगी; दूसरे को नहीं ॥ ८६ ।। . जब इस प्रकार वज्रोली मुद्रा का अभ्यास सिद्ध हो जाय, उसके आगे साधन बतलाते हैं । नारीभगे इति । रतिकाल में स्त्री की योनि में वीर्य गिर पड़ा यह मालूम होवे लेकिन गिरे नहीं, उससे पहले जो वीर्य उसको वज्रोली के अभ्यास द्वारा ऊपर को आकर्षण करे। यदि गिरने के पहले बिन्दु को आकर्षण न कर सके तो स्त्री की भग में गिरा हुआ जो अपना वीर्य और स्त्री का रज इन दोनों को ऊपर खींचकर स्थापित करे ।। ८७ ॥ वज्रोली के गुरण वर्णन "एवमिति । इस रीति से जो वीर्य को स्थिर करता है, वह योगवेत्ता होता है, और मृत्यु को जीत लेता है । परन्तु जो वीर्य का पतन करता है, वह मरण को प्राप्त होता है। इस रीति से वीर्य को धारण करने वाला जीवित होता है । इसलिए बिन्दु को इस रीति से स्थित करे ॥ ८८ ॥ . सुगन्धेति । वज्रोली के अभ्यास करने वाले देह में वीर्य को धारण करते हैं, उससे बहुत सुन्दर सुगन्ध पैदा होती है और जब तक बिन्दु स्थित रहता है, तब तक काल का भय नहीं होता है ॥ ८६ ।। चित्तायत्त मिति । निश्चय जो चित्त चलायमान हो, तो मनुष्य का वीर्य चलायमान होता है । और जो चित्त स्थिर हो तो वीर्य भी स्थिर रहता है । इसलिए चित्त के अधीन वीर्य है, और शुक्र जो स्थिर हो तो जीवन स्थिर हो, जो शुक्र नष्ट हो तो मरण हो, इस लिए शुक्र के अधीन जीवन है, इस वास्ते शुक्र और बिन्दु इन दोनों की अवश्य रक्षा करनी चाहिए ॥ ६॥ ऋतुमत्यादि । ऋतुमती स्त्री का रज और अपना बिन्दु इन दोनों को इस रीति से स्थिर करे कि इन्द्रिय करके यत्नपूर्वक रज और बिन्दु को ऊपर आकर्षण करे। वह वज्रोली-अभ्यासवेत्ता योगी जानता है ।। ६१ ॥" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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