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संकट में मन को डांवाडोल मत होने दो ।
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अनुसार प्राप्ति हो जायेगी । विशेष गुरुनों के पास जाकर उनसे जिज्ञासा पूर्ण करनी चाहिए, क्योंकि जो आत्मार्थी योगाभ्यास की इच्छा वाले हैं, उनके वास्ते संकेत ( इशारा ) लिखा है । अन्यमतावलम्बियों का खण्डन भी कर दिखाया है। बिना शस्त्र छेद के खेचरी मुद्रा करना बतला दिया । वज्रोली मुद्रा
प्रथम 'हठप्रदीपिका' और 'गोरक्षपद्धति' की प्रक्रिया दिखाकर पीछे किञ्चित् अपनी रीति, जो गुरु कृपा से पाई है, उसको लिखेंगे। प्रथम मूल का श्लोक लिखेंगे पीछे टीका के अनुसार जो भाषा है उसको लिखेंगे । कदाचित् भाषा में न्यूनता होगी, तो टीका के उतने ही अक्षर दिखाकर पीछे भाषा लिखेंगे । सो प्रथम 'हठप्रदीपिका' के श्लोक लिखते हैं । "स्वेच्छया वर्तमानोऽपि, योगोक्त नियमैर्विना ।
वज्रोलीं यो विजानाति स योगी सिद्धिभाजनम् ॥ ८३ ॥ तत्र वस्तुद्वयं वक्ष्ये, दुर्लभं यस्य कस्यचित् । क्षीरं चैकं द्वितीयं तू, नारी च वशवर्तिनी ॥ ८४ ॥ मेहनेन शनैः सम्यगूर्ध्वाकुञ्चनमभ्यसेत् । पुरुषोऽप्यथवा नारी, वज्रोलीसिद्धिमाप्नुयात् ।। ८५ ।। यत्रतः शस्तनालेन, फूत्कारं वज्रकन्दरे । शनैः-शनैः प्रकुर्वीत, वायुसंचारकारणात् ।। ८६ । नारी भगे पतबिन्दुमभ्यासेनोऽर्वमाहरेत् । चलितञ्च निजं बिन्दुमूर्ध्वमाकृष्य रक्षयेत् ।। ८७ ।। एवं संरक्षयन् बिन्दु, मृत्युं जयति योगवित् । मरणं बिन्दुपातेन, जीवनं बिन्दुधारणात् ॥ ८८ ॥ सुगन्धो योगिनां देहे, जायते बिन्दुधारणात् । या बिन्दुः स्थिरो देहे, तावत्कालभयं कुतः ॥ ८६ ।। चिन्तायत्तं नृणां शुक्रं, शुक्रायत्तञ्च जीवितम् । तस्माच्छुक्रं मनश्चैव, रक्षणीयं प्रयत्नतः ।। ६० ।।
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