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________________ अब सा श्रीवन है सद्गुणोंकी आराधना करते रहो। बादिक भेद कर निकलेगी और वह रोमादिक द्वारा निकलने से शरीर में नाना प्रकार के रोग उत्पन्न कर देगी। क्योंकि जैसे बंधा हुआ हाथी मद में चढ़ जाये, और उसको एक संग बंधनों से खोलो तो नाना प्रकार के उपद्रव करता हैं, वैसे ही कुम्मक में बंधी हुई वायु शीघ्रता से रेचन द्वारा बाहर होने से उपद्रव करती है। इसलिये रेचन करते समय आदि से लेकर अन्त तक धीरज से करे। सूर्यभेदन इसका नाम इसीलिये है, कि सूर्य से पूरक और चन्द्र से रेचन किया जाता है । इस कुम्भक के करने वाले पुरुष के मस्तक की शुद्धि होती है, उदर की शुद्धि होती है, तथा वात रोगादिक की उत्पत्ति नहीं होती। अर्थात् चौरासी प्रकार की वायु से जो रोगादि होते हैं उनकी निवृत्ति होती है । चन्द्र स्वर से इसको करे तो चन्द्रभेदन हो जाता है, चन्द्रभेदी से नेत्रों में ठण्डक होती है, और गरमी आदि भी दूर हो जाती है। परन्तु यह कुम्भक किसी शास्त्रकार ने नहीं लिखा है, इसलिये इसका भेद गुरुगम से जानों। २-उज्जाई-कुम्भक का वर्णन इसकी विधि यह है कि मुख बन्द करके पवन को कण्ठ से लेकर हृदय पर्यन्त शब्द सहित इड़ा और पिंगला नाड़ी करके शनैः शनैः खीचकर पूरक करे, फिर केश और नख पर्यन्त कुम्भक करे, पीछे डावी (वाम) नासिका से रेचन करे। इस कुम्भक के करने से कण्ठ के कफादि रोग दूर होते हैं, झठराग्नि का दीपन होता है, नाड़ियों में जो जलादिक की व्यथा हो उसको दूर करता है, और धातु प्रादि की पुष्टि करता है। परन्तु शब्दादिक के साथ पूरक करना, इस भेद को तो सिवाय गुरु के दूसरा कोई कुछ नहीं कह सकता। ३ सीत्कारी कुम्भक मुख के अर्थात् होठों के बीच में जिह्वा लगाकर शीत करके पवन का मुख से पूरक करे, फिर दोनों नासिका के छिद्रों से शनैः शनैः रेचन करे, परन्तु मुख से वायु को न निकलने दे । अभ्यास करने के पीछे भी मुख से वायु को न निकाले, क्योंकि मुख से वायु निकलने से बल की हानि होती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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