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________________ .. १८] पर-पीड़ा में मग्न अज्ञानी अन्धकारसे अंधकार की ओर जा रहे हैं । वह उड़ जाती है, और उसके उड़ जाड़े से जठराग्नि तेज होती है । उस तेजी की गरमी से कुण्डलिनी अर्थात् बालरण्डा चमक कर खड़ी हो जाती है। उसके चमकने से ही योगियों के योग सिद्ध हो जाते हैं। इत्यादि जो अनेक गुण इसमें हैं वे लिखे नहीं जा सकते । जो मनुष्य करते हैं वे योगीश्वर होते हुए आनन्द लूटते हैं, जिज्ञासु को योग्य जानकर उपदेश भी देते हैं, प्रात्मा को अपने आनन्द रूपी रस में ही भिगोते हैं। २-जालन्धर बन्ध - इस जालन्धर बन्ध का स्वरूप यह है, कि कण्ठ को नीचे झुकाकर हृदय से चार अंगुल अलग ठोड़ी को यत्न से दृढ़ स्थापित करे, इसका नाम जालन्धरबन्ध है। परन्तु इसमें पद्मासन' लगावे । जालन्धरबन्ध का अर्थ है, कि नाड़ियों का जाल (समूह) बांधे, और नीचे को गमन करे ऐसा जो कपाल का छिद्र है उसको बांधे। जालन्धरबन्ध के करने से कण्ठ के सर्व रोग नष्ट हो जाते हैं । फिर कण्ठ के संकोचित करने से दोनों नाड़ियों (इड़ा और पिंगला) का स्तम्भन करे । इसी का नाम जालन्धरबन्ध है । ३-उड़ियान बन्ध ___ इस उड़ियान' बन्ध की विधि कहने के पहले उड़ियान शब्द का अर्थ करते हैं, कि जिस हेतु से अथवा जिस बन्ध करके रोकी हुई वायु सुषुम्ना नाड़ी में उड़ जाये अर्थात् प्रवेश कर जाये । सुषुम्ना के ज़ोर से आकाश मार्ग में प्रवेश कर सकता है, इस वास्ते इसका नाम उड़ियान' है । महान् खग अर्थात् आकाश में निकलकर प्राण जिसमें बन्ध करे, और जिसमें श्रम न हो तथा सुषुम्ना पक्षी की तरह गति करे, उसका नाम उड़ियानबन्ध है । उडियान बन्ध की रीति उड़ियान' बन्ध की रीति यह है कि नाभि के ऊपर का भाग और नीचे का भाग इन दोनों को उदर समेत पीछे को खींचे, और पीठ में लग जाये ऐसा खींचे, इसका नाम उड़ियान' बन्ध है । नाभि के ऊपर नीचे के भागों को यत्न पूर्वक पीछे को लगावे, अर्थात् पीठ की तरफ दोनों भागों को ले जाये । इस उड़ियान बन्ध का अभ्यास रोटी खाने के पहले बारम्बार करे तो छः महीने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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