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________________ बुद्धिमान किसी का उपहास नहीं करता। गावस्था तक जानना चाहिए । इसको विस्तार से देखना हो तो "योगदृष्टिसमुञ्चय' नाम का ग्रन्थ जो श्री हरिभद्रसूरि जी का निर्माण किया हुआ है। उसमें तथा योगविंशतिका, आदि योग ग्रंथों में देखना चाहिए। यह हठ की प्रवृत्ति साधु को प्रथम ही होती है, श्री ऋषभदेव स्वामी से लेकर श्री महावीर-स्वामी तक चौबीस तीर्थंकरों ने हर एक बात से मन, वचन, काया को रोका। क्योंकि इस मन, वचन, काया की तथा इन्द्रियों की अनादि काल से स्वतः प्रवृत्ति हो रही है । इनकी प्रवृत्ति न होने देना, और जबरदस्ती से वश में करना यह हठयोग ही तो हुआ, क्योंकि जैसे श्री नेमिनाथ स्वामी के पास से ढण्ढण मुनि ने अभिग्रह लिया कि मेरी लब्धि से आहार मिले तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं । जब ऐसा हठ किया तो अन्तराय कर्म के ज़ोर से आहार का योग न मिला । तब एक दिन श्री कृष्ण महाराज श्री नेमिनाथ जी को बन्दना करके पूछने लगे कि हे स्वामिन् ! अठारह हजार मुनिराज हैं, उनमें कौन सा मुनि उत्कृष्ट है? तब श्री नेमिनाथ स्वामी कहने लगे कि ढण्ढरण मुनिराज सबसे उत्कृष्ट है। __ श्री कृष्ण महाराज को ढण्ढरण ऋषि को वन्दना करने के लिए उत्कण्ठा हुई, भगवान् नेमिनाथ को वन्दना कर वहां से चल दिया और इधर से ढण्ढरण ऋषि भी गोचरी की गवेषणा करते हुए श्री कृष्ण महाराज को रास्ते में मिले । तब श्री कृष्ण ने हाथी से उतरकर ढण्ढरण ऋषि को तीन प्रदक्षिणा दे कर नमस्कार किया। 'उस समय एक स्वभाव से कृपण धनवान् वरिणक को श्री कृष्ण को ढण्ढरण ऋषि को नमस्कार करते देखकर साधु को भिक्षा देने का (बहराने का) भाव उत्पन्न हुआ और ढण्ढण ऋषि जी को अपनेघर में लेजाकर मोदक भिक्षा में दिए । तव ढण्ढण ऋषि जी ने शुद्ध जानकर ग्रहण किए और नेमिनाथ स्वामी के पास पाये, पूछने लगे कि हे भगवन् ! यह आहार मेरी लब्धि से मिला है या नहीं ?. उस समय श्री नेमिनाथ स्वामी कहने लगे कि हे वत्स ! यह तेरी लब्धि नहीं, यह लब्धि तो त्रिखण्डाधिपति वासुदेव की है । तब ढण्ढण ऋषि कहने लगे कि हे स्वामिन् ! मुझे दूसरे की लब्धि का आहार न कल्पे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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