________________
लोभ मुक्ति मार्ग में बाधक है। मनुष्य सब प्रकार के इसमें वर्णन किये गये सुखों को प्राप्त कर सकता है
४५१
कह्यो एह संक्षेपथी, ग्रन्थ सुरोदय सार। .
भणे गुणे ते जीवकुं, त्रिदानन्द सुखकार ।।४५२॥ अर्थ-मैं (चिदानन्द) ने स्वरोदय सार ग्रन्थ संक्षेप से कहा है । इस ग्रन्थ को पढ़ने और समझने वाले मनुष्यों को यह सुख देने वाला है-४५२ . .
कृष्णासाडी दसमी दिन शुक्रवार सुखकार ।
निधि इंदु सर पूर्णता चिदानन्द चित्त धार ॥४५३॥ अर्थ-मिति आसाढ़ वदि दसमी शुक्रवार विक्रम संवत् १६०५को चिदानन्द ने इस ग्रन्थ की रचना की-४५३ ।।
नोट-जैन श्रावक पंडित हीरालाल दूगड़ ने विक्रम संवत् २०३० में स्वरोदय सार का अर्थ-विवेचन आदि कर दिल्ली में प्रकाशित किया।
ही
मो
TM
CTOR
मी
उकल्लायाम
___८१-संवत्सर मुनि पूर्णता, नंद चन्द चित्तधार । अर्थात् संवत् १९०७ को यह ग्रन्थ समाप्त किया । ऐसा पाठांतर है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org