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________________ Rav] मायावी दूसरोंकी निंदा कर अपने लिए अधोगतिकी सृष्टि करता है। उदक तत्त्व जो होय तो, कहो तास धरी नेह। सुख सिद्ध कारज करी, वेगे आवे तेह ॥ ३२६ ॥ होय मही सुर में उदय, पूछे प्रश्न तिवार । तो निश्चय से भाखिये, दुःख नहीं तास लगार ॥ ३३०॥ पर वासी निज थान तजि, गया दूसरे थान। . कछु चिन्ता चित्त तेह ने, चलत वायु कहो ान ॥ ३३१ ॥ रोग पीड़ तन में महा, पावक चलत बखान । नभ परकाश विदेश में, मरण अवश तस जान ।। ३३२ ॥ अर्थ-यदि कोई पाकर परदेश गये हुए मनुष्य के विषय में प्रश्न पूछे कि यह सुखी है अथवा दु:खी है तो उस समय निम्न प्रकार से तत्त्वों का विचार कर उत्तर देना चाहिए–३२८ ___(१) यदि स्वर में जल तत्त्व हो तो प्रश्न पूछने वाले को प्रेमपूर्वक कहो कि परदेश गया मनुष्य सब कार्यों को सिद्ध कर शीघ्र घर वापिस लौट आयेगा-३२६ __(२) यदि स्वर में पृथ्वी तत्त्व चलता हो उस समय विदेश गये हुए के लिए प्रश्न करे तो निश्चय पूर्वक कह देना चाहिये कि परदेश गया व्यक्ति आनन्दपूर्वक है उसे किसी प्रकार का दुःख अथवा कष्ट नहीं है-३३० (३) यदि स्वर में वायु तत्त्व चलता हो उस समय कोई परदेश गये व्यक्ति के लिए आकर पूछे तो कहना चाहिए कि वह व्यक्ति अपने स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान को चला गया है और उसके मन में कुछ चिन्ता है-३३१ . (४) यदि स्वर में अग्नि तत्त्व चलता हो उस समय कोई परदेश गये व्यक्ति के लिए आकर पूछे तो कहना चाहिए कि परदेश गये व्यक्ति के शरीर में महान अर्थ-कोई परदेश गये हुए का प्रश्न करे तो इस प्रकार उत्तर देना चाहिए। प्रश्न करने वाला यदि जल तत्त्व में प्रश्न करे तो गया हुआ मनुष्य आता है । पृथ्वी तत्त्व में प्रश्न करे तो वहां ही सुखपूर्वक रहता है । पवन तत्त्व में पूछे तो जहां रहता था वहां से कहीं अन्यत्र गया है। यदि अग्नि तत्त्व हो तो मरण को प्राप्त हुआ है । ऐसा कहे-५५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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