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________________ इच्छानों को रोकने से मोक्ष प्राप्त होता है। राजमान सुखिया महा, अथवा आपहु भूप । रहे गर्भ धरणी चलत, होवे काम सरूप ॥३०॥ धनवन्ता भोगी सुखी, चतुर विचक्षण तेह। नीतिवंत नारी गरभ, जल चलतां रहे जेह ॥३१०॥ रहे गर्भ पावक चलत, अल्प उमर ते जान । जीवे तो दुखिया हुवे, जनमत माता हान ॥३११॥ दुखी देश भ्रमण करे, विकल चित्त बुद्धि हीन । रहे गर्भ जो वायु में, इम जानो परवीन ॥३१२॥ रहे गर्भ नभ चालतां, गर्भ तणी होय हान । जन्म तेरण फल' तत्त्व में, इम ही अनुक्रम जान ॥३१३॥ सुत पृथ्वी जल में सुता, चलत प्रभंजन जान । गर्भ पतन पावक विषय, क्लीव गगन मन पान ॥३१४।। अपने अपने स्वर विषय, है परधान विचार । तत पक्ष अवलोकतां, यह दूजा निरधार ॥३१५॥ . संक्रम अवसर आयके, प्रश्न करे जो कोय । अथवा गर्भ रहे तदा, नाश अवश्य तस होय ॥३१६॥ कह या एम संक्षेप से, गर्भ तणा अधिकार। अर्थ-जिस तत्त्व' में नारी को गर्भ रहता है अथवा सन्तान का जन्म होता है, उसका फल हम अनुक्रम से कहते हैं उसे समझ कर निश्चय करें-३०८ .. अर्थ-जो पुरुष सूर्य स्वर के प्रवाह के संग सुषुम्ना स्वर के बहने के समय ऋतुदान देता है उसको अंगहीन और कुरूप पुत्र उत्पन्न होता है--२८६ - ऋत्वारम्भे रविः पुंसां शुक्रान्ते वा सुधाकरः । अनेन क्रम-योगेन नादत्ते दैव दारुकम् ॥२६२॥ - अर्थ-यदि स्त्री को ऋतुदान देने के प्रारम्भ में पुरुष का सूर्य स्वर चले और वीर्यपात के अनन्तर चन्द्र स्वर बहने लगे तो इस क्रम योग में स्त्री गर्भ धारण नहीं करती है-२६२ . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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