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________________ वह कौन सा कठिन कार्य है जिसे धैर्यवान नहीं कर सकता। के नाम बतलाये हैं । तीसरा कोठा पिंगला का है। इसके नीचे के कोठों में उसके संगतियों का ब्योरा दिया है। इसी प्रकार चौथा कोठा इंगला नाड़ी का तथा पांचवां कोठा सुखमना नाड़ी का है। इन तीनों स्वरों के संगती.उनके नीचे घरों में है तत्त्वों के विषय में कुछ आवश्यकमातें दोहा-प्रयम वायु सुर में बहे, दुतिये अगन वखान । तीजी भू चौथो सलिल, नभ पंचम मन आन ॥२२७॥ वाम दिशा थी सुर उठी, बहे पिंगला मांहि । ताकु संक्रम कहत हैं, या में संशय नांहि ॥२२८॥ तत्त्व उदक भू शुभ कहे, तेज मध्य फलदाय । हानि मृत्यु दायक सदा, मारुत व्योम कहाय ॥२२६।। ऊर्ध्व अधो अरु मध्य पुट, तिर्छा संक्रम रूप । पंच तत्त्व यह बहत है, जानो भेद अनूप ॥२३०।। ऊर्ध्व मृत्यु शान्ति अधो, उच्चाटन तिरछाय । मध्य स्तंभन नभ विषय, वरजित सकल उपाय ॥२३१॥ जंघ मही नाभी अनिल, तेज खंध जल पाय। मस्तक में नभ जानजो, दिये स्थान बताय ॥२३२॥ थिर काजे प्रधान भू चर में सलिल विचार । पावक क्रूर कारज विषय, वायु उच्चाटन मार ॥२३३॥ व्योम चलत कारज सहू, करिये नांहि मीत । ध्यान योग अभ्यास की, धारो या में रीत ।।२३४॥ पश्चिम दक्षिण जल मही, उत्तर तेज प्रधान । पूरब वायु वखानजो, नभ कहिए थिरथान ॥२३५॥ धीरज सिद्धि पृथ्वी विषय, जल सिद्धि तत्काल । हीन वायु अग्नि थकी, काज निष्फल नभ भाल ॥२३६।। सिद्धि पृथ्वी उदक विषय, मृत्यु अगन विचार । क्षयकारी वायु सिद्धि, नभ निष्फल चित्तधार ॥२३७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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