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________________ प्राणियों का हित ही अहिंसा है। पांचों तत्त्वों के ज्ञान की सहज रीतियां दोहा-तत्त्व स्वरूप निहारवा, कहूं उपाय विचार । भाव शुभाशुभ तेहनो, अधिक हिये में धा ।। २२३ ॥ श्रवण अंगूठा मध्यमा, नासा पुट पर थापा नयन तर्जनी थी ढकी, भृकुटी में लख आप ॥२२४॥ पड़े बिन्दु भृकुटी विषय, पीत श्वेत अरु लाल । नील श्याम जैसा हुवे, तैसा तिहां निहाल ॥२२५॥ जैसा वर्णं निहारिये, तैसा तत्त्व विचार । श्वास गति स्वर में लखी, इच्छा फुनि आकार ॥२२६।। अर्थ-अब मैं पांचों तत्त्वों का स्वरूप देखने का उपाय कहता हूं। तत्त्वों को जानकर उनके शुभाशुभ फल' का मन में निश्चय करना चाहिये-२२३ दोनों अंगूठों से दोनों कानों को, दोनों मध्यमा अंगुलियों से नासिका के दोनों नथनों को, दोनों तर्जनी अंगुलियों से आखों को बन्द कर लें [और दोनों अनामिकाओं एवं दोनों कनिष्टिकाओं (इन चारों अंगुलियों) से दोनों होठों को रह सकता है। (ड) देवताओं के भिन्न-भिन्न रंगों का रहस्य:-देवताओं के देहगत पीत, शुक्ल, नीला (हरा) लाल एवं काला आदि रंगों का रहस्य एवं उनका ध्यान फल कहते हैं। . (१) पृथ्वी तत्त्व (शक्ति) प्रधान देवताओं का रंग पीला होता है । पीला . रंग स्तंभन कारक है। (२) जल तत्त्व (शक्ति) प्रधान देवताओं का रंग शुक्ल रंग ज्ञान, शांति श्री, कीर्ति, सौभाग्य और मुक्ति का दाता है । (३) आग्नेय तत्त्व (शक्ति) प्रधान देवताओं का रंग लाल होता है । लाल रंग वश्य, आकर्षण, शांति, श्री, सौभाग्व, और विजय का दाता है। (४) वायु तत्त्व (शक्ति) प्रधान देवताओं का वर्ण धुप्रां सा, अंथवा हरा होता है इस रंग के कार्य उच्चाटन आदि हैं। (५) आकाश तत्त्व (शक्ति ) प्रधान देवताओं का रंग काला अथवा नीला होता है । मारण एवं उत्सादन (उच्चाटन) आदि कार्य करता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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