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________________ भूख के सदृश कोई वेदना नहीं है। थोड़ी देर सूर्य नाड़ी में चलने लगे अथवा दोनों नथनों में श्वास चलता हो और श्वास में आकाश तत्त्व चलता हो अथवा दोनों स्वर एक साथ चलें अथवा जिस (च) मृत्यु-रोग तथा आपत्तियों का पूर्वज्ञान तथा उपाय:-पहले हम लिख आये हैं कि स्वर चालन का समय तथा दिन निश्चित है । परन्तु जब कोई शुभ-अशुभ होने का हो तो स्वर के समय तथा दिनों में परिवर्तन हो जाता है । यह परिवर्तन दो प्रकार से होता है। (१) विपरीत स्वर चले अर्थात् जिस दिन बाई (डाबी) नाड़ी चलने की हो उस दिन दाईं (जीमनी) नाड़ी चले और जिस दिन दाईं (जीमनी) नाड़ी चलने की हो उस दिन बांईं नाड़ी चले। (२) इसी प्रकार जितने समय तक बांई और दाईं नाड़ी चलनी चाहिए उतने समय तक वह न चलकर निश्चित समय से अधिक तथा अल्प प्रमाण में चले तो कोई छोटी, बड़ी आपत्ति आवेगी ही ऐसा निश्चित समझें । (छ) दिनों में (तिथियों में) परिवर्तन से शुभाशुभ फल : (१) यदि शुक्लपक्ष की एकम् (प्रतिपदा) के दिन बाईं नाड़ी न चले परन्तु उससे विपरीत दाहिनी (सूर्य) नाड़ी चले तो पूर्णिमा तक गरमी से कोई रोग हो, सर्दी से कोई रोग हो, किसी कार्य में हानि हो, घर में क्लेश हो, कोई प्रिय वस्तु नाश पाये। ___ (२) यदि कृष्णपक्ष एकम् के दिन सूर्य नाड़ी न चले परन्तु उसके विपरीत चन्द्र नाड़ी चले तो अमावस तक' नं०१ में लिखे अनुसार सर्दी, क्लेश, हानि, आदि आपत्तियों की सम्भावना रहे। (३) यदि नं०१-२ के समान लगातार दो (वदि, सुदि) पक्ष तक विरुद्ध स्वर से नाड़ी चलती रहे तो अपने पर विशेष आपत्ति आने की अथवा किसी सज्जन की बीमारी का अथवा मृत्यु का समाचार मिलने की सम्भावना रहे। (४) यदि तीन पक्ष लगातार विरुद्ध स्वर से दोनों नाड़ियां चलें तो अपनी मृत्यु समीप समझें। (५) यदि ३ दिन विपरीत स्वर चले तो क्लेश अथवा कोई रोग होना संभव है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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