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- जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा दानं च यथाबिभवं दातव्यं सर्वसत्त्वेभ्य ॥८।१६।।
आ रीते तैयार थयेल जिनबिंबनी प्रतिष्ठा झडपथी दश दिवसनी अंदर करवी जोईए एम पूर्वाचार्यो द्वारा कहेवायेल छे. ।।८।१।।
देवताना उद्देशथी पोताना आत्मामां ज आगमोक्त रीते पोताना ज भावनुं जे अत्यंत श्रेष्ठ स्थापन थाय ते ज अहीं प्रतिष्ठा थाय छे. ॥८।४।।
जे कारणे परम समरसप्राप्तिनुं आ (=स्वात्म-स्थापना) परम कारण छे. स्थाप्यनी साथे पण ते समापत्ति बीज छे, ते कारणे आ (स्वात्म प्रतिष्ठा) ज मुख्य जाणवी ॥८॥५॥
परमार्थथी मुक्ति वगेरेमा प्रतिष्ठित देवतानी (पोताना आत्मामां प्रतिष्ठा)न ज थाय. प्रतिमामां प्रतिष्ठा मुक्य नथी ज, कारणके तेमां मुक्तात्मानुं अधिष्ठान वगेरे नथी होतुं. ॥८६॥
न्यास समये सम्यग् रीते सिद्धस्मरणपूर्वक, मुक्तिमां वीतरागना स्थापननी जेम मनथी (प्रतिमानुं) संग विना स्थापन करवं. ॥८।१३।।
प्रतिष्ठित बिंबनी आठ दिवस सुधी खाडो पाड्या विना पूजा करवी अने सर्वजीवोने संपत्ति अनुसार दान आपq जोईए. ॥८।१६।।
श्री शिल्परत्नाकरमां जणाव्युं छे के प्रतिष्ठा वीतरागस्य जिनशासनमार्गतः । नमस्कारैः सूरिमन्त्रैः सिद्धकेवलिभाषितैः ॥१३/८७
जैनशासननी रीति प्रमाणे वीतरागप्रभुनी प्रतिष्ठा नमस्कार (वगेरे मंत्रो) द्वारा अने सिद्धकेवली भगवंतोए कहेला सूरिमंत्र द्वारा थाय छे.
(२८) श्री शत्रुजय माहात्म्यमां ग्रंथकार श्री धनेश्वरसूरीश्वरजी म.सा. ए जणाव्युं छे के
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