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________________ १५८ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा 32. मूर्तियों की प्राचीनता से धर्म का सम्बन्ध → समीक्षा (१) मूर्ति निर्माण का कारण - इसका प्रत्युत्तर 'स्तूप निर्माण और उसका कारण' प्रकरण के उत्तर में आ गया है । विशेष में डोशीजी के विचार प्रायः आगम प्रमाणहीन कपोल कल्पित हैं । जैसे, इस प्रकरण में लिखते हैं "चित्रों का या मूर्तियों का अनादित्व हो सकता है" उसी परिच्छेद में आगे खुद ही लिखते हैं "हाँ स्मारक रखने की रीति पुरानी अवश्य है और उसी के चलते समय के फेर से मूर्तियाँ बनी।" इसमें स्पष्ट है प्रथम मन्तव्य में मूर्तियों के अनादित्व की संभावना बाद में स्मारक और मूर्तियाँ दोनों को सादि माना । इस प्रकार डोशीजी के विचारों की डावाँडोल स्थिति में कोई भी मध्यस्थ उनके विचारों को प्रमाणहीन-कल्पना मात्र ही मानेगा । आगे भी ऐसी प्रमाणहीन कपोल कल्पना देखिये - "जिनमूर्तियों से भी प्राचीन मूर्तियाँ यक्षों की सुनी जाती हैं" ऐसा कहकर प्रमाण में आगे "मथुरा में कामदेव की भी एक मूर्ति पुरानी निकली है" कहते हैं । सुज्ञजन जान सकेंगे मथुरा में कामदेव की मूर्ति निकली, अनेक जैन मूर्तियाँ भी तो मिली तो इससे यक्ष मूर्ति ज्यादा प्राचीन कैसे हो सकती हैं ? यह केवल वीतराग परमात्मा के मूर्ति का द्वेष बुलवा रहा है । जैनागम स्वतः शाश्वत जिन प्रतिमाएं बता रहे हैं (जिनकी सिद्धि पीछे सूर्याभ प्रकरणादि में की गयी हैं) प्रतिमा पूजन भी बता रहे हैं, तो ये अपनी शूद्र फुटपट्टी से उनकी प्राचीनता नापने जा रहे हैं, उसका मूल्य ही क्या है ? अनेक आगम प्रमाणों के सामने चन्द्रधर शर्मा, बेचरदासजी आदि का कोई मूल्य नही है। (२) मूर्तियों के सभी लेख सच्चे नहीं है → समीक्षा - पूरे प्रकरण में लेखकश्री ने मूर्तिद्वेष से बिना कोई प्रमाण, कल्पना के घोड़े दौड़ाये है । प्रकरण के विषयों को छोडकर विषयांतर करके मूर्तिपूजकों की निंदा को ही इसमें प्रधानता दी है। प्रतिमा लेख के जाली होने में पूरे १० पेज के लेख में केवल एक "जैन सत्य प्रकाश' के लेख का अपूर्ण अंश दिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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