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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा १. आदि. वचन स्थानकवासी संप्रदाय अनागमिक एवं निराधार पंथ है । मूर्तिपूजा के विरोध में कुंठा के कारण इसका जन्म हुआ है । स्थानकवासी संत आदि जिनमंदिर - मूर्तिपूजा का विरोध करते हैं । जैनधर्म में जिनमंदिर और मूर्तिपूजा का विरोध आज से करीब ५०० वर्ष पूर्व में हुए लोंकाशाह नामक एक जैन गृहस्थ ने किया था । जैनशासन में मूर्तिपूजा के खिलाफ प्रबल विद्रोह करनेवाले लोंकाशाह, यह प्रथम ही थे । मुसलमानों की ओर से उनको मूर्तिपूजा के खिलाफ प्रचार करने में बहुत सहायता मिली थी । एक सम्प्रदाय बन गया जिसका नाम था लोंकागच्छ । किन्तु उनके अनुयायियों ने सत्य समझकर फिर से मूर्तिपूजा को अपना लिया और लोंकागच्छ में पुनः मूर्तिपूजा पूर्ववत् प्रारंभ हो गई थी। काल के प्रभाव से धर्मसिंह और लवजीऋषि ने लोंकागच्छ सम्प्रदाय से अलग फिर से लोकाशाह की भक्ति के नाम पर मूर्तिपूजा के खिलाफ प्रचार चालू किया। उनका भी सम्प्रदाय चल पडा । लोग उनको ढूंढकमत के नाम से पहिचानने लगे, जो नहीं जंचा तो आखिर स्थानकवासी या साधुमार्गी ऐसा सुनहरा नाम बना लिया । इस स्थानकवासी सम्प्रदाय ने मनचाहा कुलिंग वेष बना लिया, उनको मानने वाले अनपढ लोग मिल गये । कुछ शास्त्र मान भी लिए, तो कुछ उनकी मनगढंत मान्यताओं के प्रतिकूल थे उनको छोड दिया । आगम शास्त्रों के मनगढंत अर्थ किये । भगवान महावीर की मूर्ति को ही छोड़ दिया, हाँ नाम लेने का अधिकार तो अपने पास रखा ही । अतः जो स्वयं को उचित लगा, वह मान लिया किन्तु जो तीर्थंकरों व प्रभावक पूर्वाचार्यों को उचित लगा, उसे अमान्य कर दिया । इस प्रकार अनागमिक और बेबुनियाद, मनगढंत इस स्थानकपंथ ने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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