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________________ प्रभुजी की अष्टप्रकारी पूजा की बोलियाँ, आरती, मंगल दीया, प्रभुजी के सामने रखे भंडार (गोलख) की आय, स्वप्न, पारणा, अंजनशलाका-प्रतिष्ठा महोत्सव प्रसंग पर प्रभु-निमित्तक सभी बोलियाँ, उपधान की नाण का नकरा, उपधान की माला पहनने की बोलियाँ या नकरा, तीर्थमाला, इन्द्रमाला आदि सभी बोलियाँ, उसी तरह प्रभुजी के वरघोड़े (शोभायात्रा) संबंधी विभिन्न वाहन आदि एवं प्रभुजी के रथ, हाथी, घोडे आदि में बैठने आदि की तमाम बोलियाँ श्री तीर्थंकर परमात्मा को उद्देश्य कर बोली जाती हैं, अतः वह सब देवद्रव्य कहलाता है । देवद्रव्य का उपयोग : * जिनमंदिर के जीर्णोद्धार में एवं नूतन जिनमंदिर निर्माण में कर सकते हैं । * आक्रमण के समय तीर्थ, मंदिर एवं प्रतिमाजी की रक्षा हेतु इस द्रव्य को काम ले सकते हैं । (नोंध : तीर्थरक्षा आदि के समय जैन व्यक्ति को यह द्रव्य दे नहीं सकते ।) जिनेश्वर भगवान की भक्ति-पूजा तो श्रावक अपने द्रव्य से ही करें, परंतु जहाँ श्रावकों के घर न हों, तीर्थभूमि आदि में जहाँ श्रावकों के घर सामर्थ्यवान न हों, वहाँ प्रतिमाजी अपजित (पूजा किए बिना के) रह न जाए, अत: अपवादरूप से देवद्रव्य से भी प्रभुपूजा करानी चाहिए । प्रतिमाजी अपूजित तो न ही रहने चाहिए । जहाँ श्रावक व्यय करने हेतु सामर्थ्यवान न हों, वहाँ प्रभुजी अपूजित न रहे उतनी मात्रा में - पुजारी का वेतन, केशर, चंदन, अगरबत्ती आदि का खर्चा देवद्रव्य में से कर सकते हैं । पर श्रावक के कार्य में यह द्रव्य इस्तेमाल न हो जाए इसका पूरा ख्याल रखें । यदि पुजारी श्रावक हो तो उसे साधारण खाते में से वेतन देवें । जैन को देवद्रव्य का पैसा न दें, अन्यथा लेने एवं देनेवाले दोनों पाप के भागी बनेंगे हैं । इतना तो पक्का याद रखें कि, जिनपूजा का स्वकर्त्तव्य रूप कार्य श्रावक को अपने निजी द्रव्य से ही करना है । नोंध : जिनमंदिर - जीर्णोद्धार-निर्माण आदि कार्य में मार्बल-पत्थर आदि किसी भी धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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