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________________ तीसरी बात देवद्रव्य की रकम देकर एवज में साधारण द्रव्य की रकम मांगना उचित नहीं लगता है। इस प्रकार अदला-बदली से प्राप्त किए गए साधारण द्रव्य का उपयोग करने से देवद्रव्य के भक्षण का आंशिक दोष लगता है। इसी प्रकार साधारण द्रव्य के बदले देवद्रव्य की मांग करना भी योग्य नहीं लगता है। कुछ संघ में सात क्षेत्र की कोई शास्त्रीय व्यवस्था नहीं होती है। प्रत्येक क्षेत्र की आय एक ही थैली में एकत्र करके संचालन किया जाता है। ऐसी संस्था से साधारण के नाम पर द्रव्य लेने से अन्य देवद्रव्य - गुरुद्रव्य - ज्ञान द्रव्य आदि के उपभोग-भक्षण का दोष लगता है। जबकि ऐसी संस्था में देवद्रव्य देने से उसके नाश का दोष लगता है। इस प्रकार कई अनिष्ट होने की संभावना के चलते बदले की उम्मीद से कुछ भी नहीं करना चाहिए। सवाल - ४ धर्मद्रव्य के संचालन के लिए ट्रस्ट बनाना जरूरी है या नहीं ? यह बताइए। जवाब - ४ सात क्षेत्र की व्यवस्था तथा धर्मद्रव्य की सुरक्षा करना चतुर्विध श्रीसंघ का कर्तव्य होता है। सात क्षेत्र की संपूर्ण व्यवस्था प्राचीनकाल से श्री जैन संघ करता आया है। श्री श्राद्धविधि, धर्मसंग्रह तथा द्रव्यसप्ततिका जैसे महान ग्रंथों में दर्शाए गुण जिसके जीवन में हों वे सुयोग्य आत्माएं संघ के कर्ताधर्ता बनने और द्रव्य संचालन करने के अधिकारी होते हैं। ऐसे अधिकारी कर्ताधर्ताओं को गीतार्थ गुरु भगवंतों के चरणों में बैठकर द्रव्य संचालन के शास्त्रीय मार्गों को जानना चाहिए। उसी के अनुसार सात क्षेत्र का संचालन व श्री संघ की जिम्मेदारियों का निर्वाह करना चाहिए। संघ के संचालक तथा द्रव्य संचालक गीतार्थ गुरु भगवंत की आज्ञा का पालन करने के लिए समर्पित होने चाहिए। उसी प्रकार गीतार्थ गुरु भगवंत जिनवचन को दर्शानेवाले धर्मशास्त्रों को समर्पित होने चाहिए। श्रीसंघ व द्रव्य संचालन की यह व्यवस्था आज तक अखंड रूप से चलती आई है। जब तक यह व्यवस्था सुचारू रूप से चलेगी तब तक श्री जैन शासन सुरक्षित तरीके से चलेगा। जहां यह व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई है वहां इसके परिणाम अत्यंत भयंकर आए हैं और अव्यवस्था देखने को मिल रही है। ___ आज भी जैन धर्मक्षेत्रों की यह मूलभूत व्यवस्था प्रवर्तमान होने से जैन धर्म की कोई भी धार्मिक प्रवृत्ति अथवा धर्मादा (चेरीटेबल ट्रस्ट) प्रवृत्ति करने-कराने के लिए किसी भी सरकारी कानून के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन आदि कराने की आवश्यकता नहीं है। इसके बावजूद देश के कुछ राज्यों में (उदाहरणतया महाराष्ट्र, गुजरात) सरकार ने ‘पब्लिक ट्रस्ट एक्ट' लागू करके ऐसे कार्य करनेवाले समूहों - संघों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया है। जब यह कानून बना तब जैनाचार्यों व जैन नेताओं ने इसका कई मुद्दों पर विरोध भी किया था परन्तु उसकी अवगणना करके यह कानून किया गया था और जैन समूहों-संघों के लिए रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता लागू की गई है इसलिए धार्मिक संस्थाओं के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हो गया है। Y धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? ११ S Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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