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३. उपधान सम्बन्धी माला आदि की उपज देवद्रव्य में ले जाना उचित समझा जाता है।
४. श्रावकों को अपने द्रव्य से प्रभु की पूजा आदि का लाभ लेना चाहिए परन्तु किसी स्थान पर सामग्री के अभाव में प्रभु को पूजा आदि में बाधा आती दृष्टिगोचर होती हो तो देवद्रव्य में से प्रभुपूजा आदि का प्रबन्ध कर लिया जाय । परन्तु प्रभु पूजा आदि तो अवश्य होनी ही चाहिए ।
तीर्थ और मन्दिर के व्यवस्थापकों को चाहिए कि तीर्थ और मन्दिर सम्बन्धी कार्य के लिए आवश्यक धनराशि रखकर शेष धनराशि से तीर्थोद्धार और जीर्णोद्धार तथा नवीन मन्दिरों के लिए योग्य मदद देवे, ऐसी यह सम्मेलन भलावन करता है ।
विजयनेमिसूरि,
आनन्दसागर,
विजयनीतिसूरि,
श्री राजनगर जैन संघ,
वडावीला
५.
जयसिंहसूरिजी
विजयवल्लभसूरि, मुनिसागरचन्द,
ता. १०-५-३४
( मुनि सम्मेलन के इन ठहरावों की मूल प्रति का ब्लाक परिशिष्ट में दिया गया
है ।)
(७)
वि.सं. २०१४ सन् १९५७ के चातुर्मास में श्री राजनगर ( अहमदाबाद) में रहे हुए श्री श्रमण संघ ने डेला के उपाश्रय में एकत्रित होकर सात क्षेत्रादि धार्मिक व्यवस्था का शास्त्र तथा परम्परा के आधार से निर्णय किया उसकी नकल :
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विजयसिद्धिसूरि,
विजयदानसूरि,
विजयभूपेन्द्रसूरि
कस्तूरभाई मणीभाई
देवद्रव्य
२. जैन देरासर (मन्दिर)
१. जिन प्रतिमा,
देवद्रव्य की व्याख्या :
प्रभु के मन्दिर में या मन्दिर के बाहर - चाहे जिस स्थान पर प्रभु के पंच कल्याणकादि निमित्त तथा माला परिधापनादि देवद्रव्य वृद्धि के कार्य से आया हुआ तथा गृहस्थों द्वारा स्वेच्छा से समर्पित किया हुआ धन इत्यादि देवद्रव्य कहा जाता है ।
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ?
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