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को देवद्रव्य के रूप में मानना चाहिये । इस सम्बन्ध में अकेले मेरा ही यह अभिप्राय नहीं है, अपितु श्री विजयकमलसूरीश्वरजी महाराज का तथा उपाध्यायजी वीरविजयजी महाराज का और प्रवर्तक कान्तिविजयजी महाराज आदि महात्माओं का भी ऐसा ही अभिप्राय है कि स्वप्नों की आय को देवद्रव्य मानना ।
प्रश्न- ४ केसर, चन्दन के व्यापार की आय किसमें गिनी जाय ?
उत्तर-४ अपने पैसों से मंगाकर केसर - चन्दन बेचा हो और उसमें जो नफा हुआ हो वह अपनी इच्छानुसार खर्च किया जा सकता है । परन्तु कोई अनजान व्यक्ति मन्दिर के पैसों से खरीदी न करले यह ध्यान रखना चाहिए ।
प्रश्न- ५ देवद्रव्य में से पुजारी को पगार दी जा सकती है या नहीं ?
उत्तर-५ पूजा करवाना अपने लाभ के लिए है । परमात्मा को उसकी आवश्यकता नहीं। इसलिए पुजारी को पगार देवद्रव्य में से नहीं दी जा सकती । कदाचित् किसी वसति रहित गाँव में दूसरा साधन किसी तरह न बन सकता हो तो चांवल आदि की आय में से पगार दी जा सकती है ।
प्रश्न- ६ देव के स्थान पर पेटी रखी जा सकती है या नहीं ?
उत्तर- ६ पेटी में साधारण और स्नान के पार्नी सम्बन्धी खाता न हो तो रखी जा सकती है, परन्तु कोई अनजान व्यक्ति देवद्रव्य या ज्ञानद्रव्य को दूसरे खाते में भूल से न डाले ऐसी पूरी व्यवस्था होनी चाहिये । साधारण खाता यदि पेटी में हो तो वह देव की जगह में उपार्जित द्रव्य श्रावक-श्राविका के उपयोग में कैसे आ सकता है ? यह विचार करने योग्य है ।
प्रश्न- ७ नारियल, चांवल, बादाम की आय किसमें गिनी जाय ?
उत्तर- ७ नारियल, चांवल; बादाम की आय देवद्रव्य खाते में जमा होनी चाहिए । प्रश्न - ८ आंगी की बढोत्री किस में गिनी जाय ?
उत्तर- ८ आंगी की बढ़ोत्री निकालना उचित नहीं है । क्योंकि उसमें कपट क्रिया लगती है। इसलिए जिसने जितने की आंगी करवाने को कहा है उतने पैसे खर्च करके उसकी तरफ से आंगी करवा देनी चाहिए ।
सद्गृहस्थों ! जो खाता डूबता हो उसकी तरफ ध्यान देने की खास आवश्यकता है । आजकल साधारण खाते की बूम सुनाई पड़ती है, अतः उसे तिराने की खास
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ?
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