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________________ परिशिष्ट-८ स्वप्नों की आय का द्रव्य, देवद्रव्य ही है ! पूज्यपाद सुविहित आचार्यादि महापुरुषों का शास्त्रानुसारी महत्वपूर्ण आदेश विक्रम संवत् १९९४ में पू. पाद सुविहित शासन मान्य गीतार्थ आचार्य भगवन्तों का शास्त्रानुसारी स्पष्ट एवं दृढ़ उत्तर यही प्राप्त हुआ कि स्वप्नों की आय को देवद्रव्य ही माना जाए और उसमें जो भी वृद्धि हो वह भी साधारण खाते में न ले जाते हुए देवद्रव्य में ही ले जाई जाए । इसके पश्चात् पुनः वि.सं. २०१० में इसी महत्त्वपूर्ण प्रश्न के सम्बन्ध में वर्तमानकालीन समस्त तपागच्छ के श्वे.मू.पू. संघ के पूज्य सुविहित शासन-मान्य आचार्य भगवन्तों के साथ पत्र-व्यवहार करके उनके स्पष्ट एवं सचोट निर्णय तथा शास्त्रीय मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए वेरावल निवासी सुश्रावक अमीलाल रतिलाल ने जो पत्र-व्यवहार किया और जो उन पू.पाद आचार्य भगवन्तों के उत्तर प्राप्त हुए वे 'श्री महावीर शासन' में प्रसिद्ध हुए । उन्हें पुस्तकाकार प्रदान करने हेतु अनेक भव्यात्माओं का आग्रह होने से तथा वह साहित्य चिरकाल तक स्थायी रह सके इस दृष्टि से पुनः उन्हें प्रकाशित किया जा रहा है ताकि आराधक भाव में रूचि रखनेवाले कल्याणकामी आत्माओं के लिए वह उपयोगी एवं उपकारक बने । (१) अहमदाबाद, श्रावण सुदी १२ परम पूज्य संघ-स्थविर आचार्यदेव श्रीमद् विजयसिद्धिसूरीश्वरजी महाराज सा. आदि की तरफ से वेरावल मध्ये श्रावक अमीलाल रतिलाल जैन ! धर्मलाभ । आपका पत्र मिला । पढ़कर समाचार ज्ञात हुए । आप के पत्र का उत्तर इस प्रकार हैं : चौदह स्वप्न, पारणा, घोड़ियाँ तथा उपधान की माला की बोली का घी-ये सभी आय शास्त्र की दृष्टि से देवद्रव्य में ही जाती है और यही उचित है । तत्सम्बन्धी शास्त्र के पाठ ‘श्राद्धविधि' 'द्रव्य सप्ततिका' एवं अन्य सिद्धान्त-ग्रन्थों में हैं । अतः यह आय | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? १११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004076
Book TitleDharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhwaj Parivar
PublisherDharmdhwaj Parivar
Publication Year2012
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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