________________
'नहीं-नहीं' कहने के भाव में हों । खिलानेवाला हाथ जोड़े तो खानेवाला भी सामने हाथ जोड़े । 'मैं भी कब ऐसा साधर्मिक-वात्सल्य करूँ' ऐसा मनोरथ करें ।
साधर्मिक-वात्सल्य, साधर्मिक-भक्ति एवं संघ भोज में ऐसी उत्तम मर्यादाओं का पालन होना चाहिए । इसके विपरीत आज साधर्मिक-वात्सल्य करनेवाले को अन्यों का स्वागत करने का भाव न हो, आनेवाले के प्रति आदर-बहुमान न हो, ‘आओ ! खाने का लाभ लो !' ऐसी वृत्ति हो, 'मैंने इतनों को खिलाया, ऐसा-ऐसा खिलाया' - ऐसा भाव हो एवं खाने आनेवालों को भी मानों बाकी रह न जाएं' ऐसी वृत्ति हो, थालियां या डीशें हाथ में ले लाईनें लगाकर खड़े हों, खुद ही खुद अपनी थालियाँ या डीशें भर रहे हों, कोई चीज लेनी रह न जाए, उसकी चिंता हो, पाँव में बूट या जूते पहने हों, हाथ में थाली या डीश को पकड़कर खा रहे हों, ऐसे भोजन व्यवहार को सार्मिक-वात्सल्य, सार्मिक-भक्ति या संघ भोज का नाम नहीं दे सकते । ऐसा भोजन-व्यवहार जैन धर्म की मर्यादा के अनुरूप तो है ही नहीं, अपितु आर्यदेश की उत्तम मर्यादा एवं प्रणालिका के साथ भी संगत नहीं है । ऐसी प्रवृत्ति से जिनाज्ञा की आराधना नहीं, बल्कि विराधना होती है ।
शंका-५६ : वीशस्थानकजी की पूजा करने के बाद अरिहंत परमात्मा की पूजा हो सकती है या नहीं ?
समाधान-५६ : एक वीशस्थानक की पूजा करने के बाद दूसरे वीशस्थानक की पूजा कर सकते हैं और उसमें मध्यवर्ती पद में तो अरिहंत परमात्मा ही होते हैं । वीशस्थानक कोई व्यक्ति की पूजा नहीं है, पर पद की पूजा है । अत: वीशस्थानक की पूजा करके अरिहंत परमात्मा की पूजा करने में कोई बाधा नहीं है । यही नियम सिद्धचक्रजी में भी समझें । . .
शंका-५७ : जैन मंदिरजी के किसी भी खाते के पैसे; जैसे कि देवद्रव्य, साधारण, सर्वसाधारण जैसे खातों में से मंदिरजी की कोई सम्पत्ति न हो उसमें पैसे इस्तेमाल किए जा सकते हैं क्या ? पूरी विगत नीचे मुजब है । एक मंदिरजी के पास में ही सोसायटी का कोमन प्लॉट आया हुआ है । इस कोमन प्लॉट में मंदिरजी की कोई मालिको नहीं है । मंदिरजी एवं सोसायटी के कोमन प्लॉट का आपस में कुछ लेना-देना भी नहीं है। | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org