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________________ फ 5 Jain Education International 000 000 प्रकाशकीय निवेदन- हिन्दी में - दूसरी आवृत्तिमेंसे उद्धृत इस काल के अन्तिम चौबीसवें तीर्थकर श्रमण भगवान श्री महावीरदेव के जीवन प्रसंगों का आकर्षक, अनुपम चित्रोमे एक अभूतपूर्व भव्य संपुट संग्रह हमारी समिति प्रकाशित कर रही है जिससे हम अत्यन्त आनंद का अनुभव कर रहे है। ये चित्र प्रसिद्ध कलानिष्णात सिद्धहस्त चित्रकार श्री गोकुलभाई कापडिया ने बनाये हैं। उन्होंने भगवान श्री महावीर के जीवन प्रसंगों के विषय में गुरूदेव आदि द्वारा प्राप्त सलाह- सूचना और अन्य सामग्री का गहन अध्ययन, चिन्तन एवं मनन करने के पश्चात् इनका चित्रालेखन किया है। सचमुच इन्होंने अत्यंत धैर्य रखकर अपनी सर्वश्रेष्ठ कलाशक्ति को कार्यान्वित करके अत्यन्त आकर्षक, भावपूर्ण सब को मुग्ध करनेवाले, मनोरम चित्र तैयार करके भगवान श्री महावीरदेव के प्रेरणाप्रद जीवन का ऐसा हृदयंगम दर्शन कराया है कि रोम-रोम पुलकित हो उठता है। परिचय के प्रारंभ में दिये गये हेतुलक्षी सान्वर्थक सुशोभन प्रतीक एवं पट्टियाँ, परिशिष्ट खण्ड की पट्टियाँ और प्रतीकों का रेखाकन कलामर्मज्ञ बहुश्रुत विद्वान मुनिश्री यशोविजयजी की नयी नयी कल्पना व मार्गदर्शन अनुसार डभोई के कुशल चित्रकार श्री रमणिकभाई शाह ने अत्यंत सावधानी, लगन और अपनी सुझबुझ के साथ भक्तिभावपूर्वक स्वच्छ और सुंदर ढंगसे किया है, इस लिए हम हार्दिक धन्यवाद देते हैं। हम वर्षो से यह कभी अनुभव कर रहे थे कि परमतारक, करूणामूर्ति वीतराग विभूति विश्ववत्सल धर्मतीर्थ के प्रवर्तक अहिंसावतार तीर्थंकर महावीरस्वामी के संपूर्ण जीवन का द्योतक या परिचायक एक भी चित्र संकलन उपलब्ध नहीं है। जबकि अन्य अनेक धर्मपथों के संस्थापकों, प्रवर्तकों अथवा अवतारी महापुरुषों के चित्रमय संकलन अत्यधिक संख्या में समुपलब्ध हैं। महावीर विषयक चित्रांकन की इस कमी से परमपूज्य साहित्यकलारत्न मुनिप्रवर श्रीमद् यशोविजयजी महाराज अतीव व्यथित थे। अतः आपने इस गुरुतर कार्य को सम्पन्न करने का दायित्व अपने उपर लिया और अनवरत परिश्रम करके अनेक विघ्न बाधाओं को पार करके इसे सांगोपांग सम्पन्न किया। मुनिश्री ने अपने संपूर्ण जीवनानुभव की रसधारा इन चित्रों में उंडेल दी है। पूज्य मुनिश्री यशोविजयजी महाराज कलामर्मज्ञ है। कला के संबंध में उनकी गहरी व व्यापक सूझ है. दृष्टि पैनी है। इसी लिए आपश्री अच्छे अच्छे कलाकारों, कारीगरोंके मार्गदर्शक बनते हैं। कला के सिद्धान्तों और नियमों से भली भाँति परिचित होनेके कारण आपश्री की देखरेख में सभी चित्र, कलाकृतियों शास्त्रीय, शुद्ध और सुन्दर बनती हैं। रेखा और रंग को समझने की स्वाभाविक ही देन होने से आपश्री की दृष्टि के नीचे बननेवाले चित्रों का उठाव अत्यंत आकर्षक और सर्वांग सुंदर बनता है। आपश्री की इन शक्तियों का लाभ इस चित्रसंग्रह को उत्तम प्रकार से प्राप्त हुआ है। इसी लिए यह प्रकाशन वस्तुतः अनुपम, बेजोड और भव्य बना है। हमें विश्वास है कि चतुर्विध जैन श्रीसंघ और अन्य कलारसिक इरा अभूतपूर्व श्रेष्ठ प्रकाशन का आदर और सम्मानपूर्वक स्वीकार करेंगे। पूज्य मुनिजी के कथनानुसार इस प्रकार का प्रयास जैन परंपरा में हजारों वर्षों में सर्वप्रथम ही हुआ है। यह जानकर तो हम और भी अधिक गौरव का अनुभव करते हैं। इस कार्य की सफलता का मुख्य श्रेय मुनिजी को है। इस कार्य का समग्र उत्तरदायित्व आपश्रीने स्वीकार किया था। 'आरंभस्य अन्तगमनं' की नीति का समादर करनेवाले मुनिजी ने कठिनाइयाँ और कष्टों की परंपरा के बिच भी प्रबल और पूर्ण परिश्रम करके जैन समाज को ही नहीं अपितु विश्व को भारत की महान वीतराग विभूति के जीवन प्रसंगों की एक अनमोल अमूल्य भेंट अर्पित की है। संपूर्ण ग्रन्थ का आयोजन आपश्री की प्रतिभाशील दृष्टि के नीचे हुआ है। प्रत्येक चित्रका परिचय पिछले भाग में दिये गये ३५ चित्रों और पूर्वभवों का सांगोपांग परिचय तदनन्तर अत्युपयोगी बारह परिशिष्ट, अन्त में पीले पृष्ठों में दिये गये रेखाचित्रों की ४० पट्टियाँ और १०५ सुशोभन प्रतीकों का परिचय इत्यादि पूज्य मुनिजीने स्वयं लिखा है। जैन संस्कृति, जैन आचार और उसके साधनों, प्रसंगों और कला को विविध प्रकार से परिचय देनेवाली पट्टियाँ और प्रतीक सुवर्ण की अंगूठी में जड़े रत्न की भाँति विमोहित एवम् प्रभावित करते हैं। ये पट्टियाँ और प्रतीक मुनिजी की गहरी, व्यापक कल्पनाशक्ति और कलानिपुणता के जीवत उदाहरण हैं। आपश्री की देखरेख में इस कार्य के होने से इनका रेखांकन सुंदर, स्वच्छ और व्यवस्थित हो सका है। इन रेखाचित्रों के लिये मुनिजी ने अपने ज्ञान, विज्ञान, अनुभव और कलादृष्टि का कैसा अर्पण किया है? इसका वास्तविक परिचय उन चित्रों को उपर उपरसे नहीं किन्तु सूक्ष्मतापूर्वक देखने से ही हो सकेगा। पूज्य मुनिजी द्वारा किये गये अनवरत और अथाह परिश्रम को हम नत मस्तक होकर वंदन करते हैं और लोकोत्तर परमात्मा के जीवन प्रसंगों की बेजोड कलाकृति देने के लिये आपश्री का भूरि भूरि आभार मानते हैं। देश-विदेश के पाठक भगवान श्री महावीर के प्रेरक जीवन को समझ सके इसके लिये प्रत्येक चित्र का परिचय गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी में दिया है। शासन देव देवियों की असीम अनुकृपा, ज्ञानवृद्ध व वयोवृद्ध स्व परमपूज्य आचार्य श्रीमद् विजय मोहनसूरीश्वरजी महाराज तथा परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद विजय प्रतापसूरीश्वरजी महाराज तथा परमपूज्य युगदिवाकर आचार्य श्रीमद् विजय धर्मसूरीश्वरजी महाराज के आशीर्वाद और मुनिप्रवर श्री यशोविजयजी की अनेकविध सहायता से यह कार्य सुसंपन्न हुआ। अतएव आप सभी के चरणों मे हमारी भूरि भूरि वन्दना है। यह पुण्यकार्य में प्रत्यक्ष या परोक्षरूप में विविध प्रकार से सहयोगी बननेवाले शुभेच्छा रखनेवाले पूज्य मुनिगण, पूज्य साध्वीजीवृंद, दाताओं, विद्वानों, प्रोफेसरों, कार्यकर भाइओं, बहनों, प्रिन्टींग प्रेसों आदि के हम आभारी हैं। इस चित्रसंपुट की भाँति ही तीर्थकर भगवान श्री पार्श्वनाथ, श्री नेमिनाथ, श्री शांतिनाथ, श्री आदिनाथ इन चार तीर्थकरों के जीवन प्रसंगों के चित्रों का दूसरा संग्रह (एलबम् ) पूज्य मुनिजी प्रकाशित करानेवाले हैं। उसमें आपश्री के मार्गदर्शन में भगवान श्री पार्श्वनाथ के चित्रों का कार्य तो शुरू भी हो गया है। पूज्य मुनिजी की भावना तीन-चार अत्यन्त उपयोगी सचित्र प्रकाशनों की है। किन्तु आपश्री का जीवनरथ कार्यरूप अनेक अभ्यों के साथ जुड़ा रहने के कारण और आपश्री की अधिक शारीरिक अस्वस्थता को देखते हुए उन प्रकाशनों का कार्य कब हो इसके लिये समय की प्रतीक्षा करनी होगी। शासनदेव को हार्दिक प्रार्थना है कि पूज्य मुनिजी को साहित्यकला से संबंधित अनेक सचित्र प्रकाशन करने का बल और अवसर दें। अन्तमें हमारी शुभ कामना है कि विश्व में सर्वत्र करुणामूर्ति तीर्थंकर भगवान महावीर के सर्वोदयतीर्थमूलक अहिंसा का आदर्श व्याप्त हो। हिंसा एवम् दुःखों का अन्त हो, सब के हृदय में प्रेम, सत्य, करुणा, समता एवं अनेकान्त मार्गका प्रकाश उदित हो सब सुखी हो। निवेदक 卐 वि.सं. २०३०, इ. सन् १९७४ बम्बई जैन चित्रकला निदर्शन समिति ००० For Personal & Private Use Only फ 5 www.jainelibrary.org
SR No.004065
Book TitleTirthankar Bhagawan Mahavir 48 Chitro ka Samput
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherJain Sanskruti Kalakendra
Publication Year2007
Total Pages301
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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