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समय देशना - हिन्दी
७७ कि इस खेत में यह बोऊँगा और फिर गोदाम भरूँगा। यानी यह किसान को मालूम न हो, तो किसान पागल है । जब बिना द्रव्यदृष्टि के खेती नहीं होती है, तो बिना द्रव्यदृष्टि के मोक्ष कैसे होगा? विश्वास रखो, द्रव्यदृष्टि के अभाव में खेती नहीं होती है। बीज पौधा नहीं होता है, पर उस किसान को बीज में पौधा दिखता है। बिना द्रव्यदृष्टि के, हे माँ ! तू रोटी नहीं बना सकती; क्योंकि आटा होता है हाथ में, रोटी नहीं होती। जीव के योग उपयोग बिना रोटी का निर्माण नहीं। जब तेरे ज्ञान में रोटी आती है, तब चौकी पर बिलती है। ज्ञान में न आये, तो रोटी बनेगी कैसे ? ज्ञान में पहले आती है, या कि बन जाती है ? पहले ज्ञान में आती है । मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूँ। जो मैं आपको बता रहा हूँ, मुझे वह दिखाई दे रहा है। मैं चाहता हूँ कि आप भी देखना शुरू करो। अभी आपको दिखता है, इसलिए द्रव्यदृष्टि है। वह ज्ञायकभाव नहीं है । ज्ञायक भाव जो है वह द्रव्यदृष्टि को भी जान रहा है, और पर्यायदृष्टि को भी जान रहा है । ज्ञायकभाव तो ज्ञायकभाव है। द्रव्यदृष्टी तो वस्तु के अन्दर व्यक्त पर्याय को देख रहा है। यानी अव्यक्त पर्याय को वस्तु में देख रहा है,
और ज्ञा कभाव जो है,व्यक्त व अव्यक्त को त्रैकालिक देखता है, एकसाथ देखता है। द्रव्यदृष्टि,लक्ष्यदृष्टि , परादृष्टि । पर्यायदृष्टि यानि अपरा दृष्टि । इस रूप में नहीं देखोगे, यही तो भूल कर रहे हो । बीज खेत में डालते हो तो दाना देखते हो, कि बालें देखते हो? हाथ में बीज दिखता है, दृष्टि में बाल दिखती है। बाल न दिखती होती, तो मुट्ठी का दाना मिट्टी में क्यों डालते होते ? बस, भूल यहीं कर रहे हो कि अपनी दृष्टि का प्रयोग परदृष्टि में कर रहे हो। योगी निज की द्रव्यदृष्टि का प्रयोग निज में करता है, सो 'समयसार' बन जाता है। और आप, आप सोचो-समझो। बिना द्रव्यदृष्टि के संसार में कोई मनुष्य नहीं है। कोई है क्या ? पर वह द्रव्यदृष्टि पर में जा रही है । एक सज्जन पुरुष धर्मात्मा ज्ञानीजीव यदि संतान की दृष्टि से गर्भधारण भी करता है तो उसे भोगदृष्टि नहीं दिख रही है, संतान नजर आ रही है। अभी तो बेटा कलकल के रूप में था, फिर भी घर के आँगन में बेटा किलकारी करता दिखता है । यह है द्रव्यदृष्टि । और समाज से पूछो, बेटे की शादी की चर्चाएँ प्रारंभ होती हैं तो इनको बहू की पायल की आवाजें सुनाई पड़ने लगती हैं। और कभी-कभी माँ आँगन में रुक जाती है, क्योंकि उसे बहू दिखने लगती है। हे मुमुक्षु ! जैसे बेटे की शादी की चर्चाएँ पुत्रवधू की याद दिलाती हैं, ऐसे भगवती जिनेन्द्र की वाणी में भगवान् की आवाज सुनाई पड़ने लग जाये तो तू परमात्मा बन जाये । क्या करूँ, लगाते ही नहीं हो । जानते सब हो।
आचार्य कुन्दकुन्द देव ने 'समयसार' ग्रन्थ में जगत के बाहर की कोई बात नहीं लिखी। उन्होंने अनादि संस्कार मिटाने के लिये लिखी हैं । आप समझ नहीं पा रहे । हकीकत यह है कि घर-घर की बातें लिखी हैं। ये घर-घर की बातें सभी की निज-घर की हैं, पर घरों की नहीं हैं।
ज्ञायकभाव मेरा स्वरूप है और ज्ञायकभाव जगत का वेदकभाव है। फिर भी जगत में जानेवाला भाव नहीं है और जो जगत का वेदन करेगा, वह स्वयं का वेदन नहीं करेगा तो परोक्ष-प्रमाण माननेवाला मीमांसक होगा। जब ज्ञाता पर को जाने परन्तु निज को न जाने तो वह ज्ञाता है, या कि उन्मत्त पुरुष है? वह तो मीमांसक है, वह अर्हत्दर्शन में जीनेवाला मुमुक्षु नहीं है । परोक्षप्रमाण ज्ञान को परोक्ष कहनेवाला कोई दर्शन है तो वह मीमांसक है।
ध्यान दो बेटे ने पानी में पीला रंग मिला दिया। आपको पानी कैसा दिख रहा है ? हे ज्ञानी ! इन आँखों से देखोगे तो पानी पीला है, और अन्दर की आँख खोलकर देखेगा, तो रंग पीला है, जबकि पानी तो अपने स्वभाव में जैसा है, वैसा ही है। पीला पानी है। ध्रुव सत्य बोलिए पानी पीले होने पर भी पीलापन पानी
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