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________________ ५० समय देशना - हिन्दी और जीर्ण कर्मों की निर्जरा कर लेता। पर तूने क्या किया ? तूने भूत की पर्याय को नहीं देखा, वर्तमान की पर्याय को झाँकता रहा। गुरुदत्त स्वामी के शरीर पर कपिल ब्राह्मण ने आग लगा दी, ये तो दुनियाँ देख रही है। तुम्हें गुरुदत्त महाराज पर करुणा तो आ रही है, पर जिस पर उनकी करुणा छूट गई थी, उस पर करुणा क्यों नहीं आ रही है ? हे स्वामिन् ! वर्तमान की पर्याय में कपिल रुई लपेटते दिख रहा है, अग्नि लगाते दिख रहा है, लेकिन जब आप थे सम्राट हस्तिनापुर के, तब आये थे ससुराल में । वह द्रोणगिरि गुरुदत्त की ससुराल है । प्रायः करके देखा जाता है कि अपने घर में जो चूहे से भी डरते हैं, वे ससुराल में वीरता जरूर दिखाते हैं। जिस गुफा में वर्तमान में गुरुदत्त की चरण चिन्ह हैं, उस गुफा में एक सिंह विराजता था । चन्द्रनगर नाम का नगर था। पर्वत की चोटी के नीचे आज भी उसके खंडहर हैं। पहले द्वार से नीचे उतर जाना, नीचे खंडहर मिलेंगे। हम लोगों ने चातुर्मास में देखा है । ससुराल में लोगों ने चर्चा की कि सिंह परेशान कर रहा है। युवावस्था क्या नहीं करा देती ? मैं वीर हूँ। वह शेर जब अपनी गुफा में सो रहा था, तब इन्होंने जाकर, लकड़ी और कंडे भर दिये, और आग लगा दी। वही सिंह का जीव आर्त्तध्यान से मरण कर कपिल ब्राह्मण हुआ। फिर भी देखो कि इनको वैराग्य हो गया। कालान्तर में वह शिशु युवा हुआ। अपने खेत में हल चलाना था। ये हस्तिनापुर से विहार करते-करते वहीं आ गये, उसके खेत पर विराज गये। विराजने के उपरान्त वह मण सोचता है- साधु है, बैठे रहने दो। वह जब दूसरे खेत पर जाने लगा, तो मुनिराज से कहने लगा- महाराज ! हमारी पत्नी भोजन लेकर आयेगी, आप कह देना कि दूसरे खेत पर गये हैं। वह ब्राह्मणी आती है। जब अपने स्वामी को नहीं देखा, तो पुछा कि महाराज! मेरे स्वामी आये थे क्या, कहाँ गये हैं? पर दिगम्बर साधु एकांत में एक स्त्री से बात नहीं करते, चाहे दीक्षित हो चाहे अदीक्षित हो, चाहे आर्यिका, क्षुल्लिका, ब्रह्मचारिणी हो या सामान्य स्त्री हो। दिगम्बर तपोधन एकान्त में किसी एक स्त्री से बात क्या, धर्म की चर्चा भी नहीं करते। कैसे उत्तर देते? महाराज मौन रहे। ये निमित्त तो बाहर के थे, अन्दर का निमित्त तो कोई और बैठा था। पत्नी घर चली गई, भूखा किसान और भूखा शेर बराबर होता है। घर पहुँचता है, पत्नी से कहता है कि आज भोजन लेकर क्यों नहीं आई? और भूख के कारण गुस्से में पत्नी की पिटाई कर दी। पूछा- क्यों नहीं गई थी ? पत्नी ने कहा कि में गई थी, पर आप नहीं थे खेत पर । 'वहाँ पर कोई और नहीं था ? पत्नी ने कहा- 'एक महाराज थे, उनसे पूछा तो उन्होंने कुछ बोला ही नहीं। किसान को भूख के कारण गुस्सा बहुत आ रहा था। उसने भोजन तो किया नहीं और जिससे बैलों को हाँकता था वह चाबुक लेकर मुनिराज के पास पहुँच गया और कहता है- 'मैंने आपके कारण अपने खेत का काम छोड़ा और आपने पत्नी को बताया नहीं कि मैं दूसरे खेत पर हूँ। हे ज्ञानी ! पूर्व की अग्नि के संस्कार जागृत हो गये। वी सेमर का वृक्ष वही था, जिससे रुई होती है। उस वृक्ष से रुई को निकालकर जो लकड़ी कंडों से ढका था, संस्कार वे जाग्रत हो गये। उस कपिल ने रुई से मुनिराज को लपेट दिया और अग्नि लगा दी। दहक-दहक कर योगीराज का शरीर झुलसने लगा ।तन जल रहा था, पर चेतन ध्यान की अग्नि से कर्मों को झुलसा रहा था। ये था समयसार देखते-ही-देखते कैवल्य-सूर्य प्रगट हो गया, लगी हुई अग्नि के फोले क्षण मात्र में विलीन हो गये और परम औदारिक शरीर हो गया । कपिल सामने बैठा था, उधर स्वर्ग से देव वंदना करने आ गये और केवली की वाणी खिरी, सौधर्म इन्द्र ने पूछ लिया- प्रभु ! इस कपिल ने ऐसा क्यों किया? तब अरहंत की देशना में उस क्षण खिरा-'दोष इसका नहीं, दोष मेरा पूर्व जन्म का ही था । यह तो वर्तमान की पर्याय में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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