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________________ समय देशना - हिन्दी हो जाओ। आप कहो कि मैं परिवार की सेवा कर रहा हूँ। तो चार अंगुल पर विजय होती तो मेरे जैसा बैठता और कहता कि कौन किसका ? ये चार अंगुल के वशीभूत होकर पूरी पीठ-की-पीठ छिल गई, पेट व पीठ एक हो गया, कितनों के मान-अपमान को सहन करना पड़ा । ब्रह्मलीनता की दृष्टि बन गई होती तो, विश्वास रखो, रोटी के टुकड़ों के पीछे पर की सेवा इतनी नहीं करनी पड़ती, जितनी अब्रह्म के पीछे पर की सेवा करना पड़ती है। रोटी तो साधुओं को मिलती ही है सब जगह, आपकी अपेक्षा पूजा के साथ मिलती है। मत निहारो मुझे। अपने मन से पूछो कि मैं भूतार्थ कह रहा हूँ कि अभूतार्थ, सत्यार्थ है कि असत्यार्थ है। ब्रह्मधर्म को स्वीकार कर लिया होता, तो आज ये दशा नहीं होती। कोई किसी की सेवा नहीं करता है, अपनी विषयों की पूर्ति के लिए जगत की सेवा करना पड़ती है, और जब छूटने का समय आता है तब तक तुम अधमरे हो जाया करते हो। जब-तक सुध आई, तब-तक सुध गई, सुधा-जैसी पर्याय गई। सुधा यानी चूना काली दीवाल को भी सफेद कर देता है। तेरी क्या सुधा अवस्था थी, जिस सुंदर अवस्था में काले कर्म को भी सफेद कर सकता था ।पर सुध गई तो सुधा गयी, पर यहाँ बैठे हो । जो भक्तिपूर्वक जिनवाणी सुनता है, वह भावी भगवान्आत्मा है। अन्तिम श्वाँस भी रत्नत्रय धर्म में लगा दी, तब भी निर्वाण तेरी मुट्ठी में है। मैं आपको हताश नहीं करूँगा। हम तो आपको ज्ञानी ही कहते हैं। आज चौथी गाथा को निहार लो और पूछो हृदय से कि हम कितने ज्ञानी हैं। भगवन् ! क्या दोष कहूँ, क्या दोष दूँ । न दोष कहने का है, न दोष देने का है। जिनवाणी सुनी दिनभर, पर शाम को भूल जाते हैं; पर जिसे किसी ने सुनाया भी नहीं था, फिर भी याद आते हैं। जब योगी एकान्त में बैठकर निजानंद का रस चखता है, तब भोगी विषयों की नाली में अपने द्रव्य को खोता है। हे माँ ! इतनी मेहनत करके दूध लगाकर लाया, तब तूने पाँच लीटर में पाँच सौ ग्राम घी निकाला और निकालने के बाद कौन-सी समझदार होगी जननी, जो घर की नाली में फेक दे घी को । हे मुमुक्षु ! तुमने जीवन भर खाया-पिया और अनेक भवों से इस पर्याय को निकालकर लाये हो और भोगों की इस गंदी नाली में अपनी द्रव्य को बहा डाला । अबुद्धिपूर्वक नहीं, बुद्धिपूर्वक बहाया । जब बहा रहा था, तब प्रज्ञा बंद हो गई थी; जब बह गया, तो प्रज्ञा खुल गई। फिर रो रहा है कि मैंने सब बहा डाला । जो विवेक पाप करने के बाद आया, उस विवेक को धिक्कार दे देते, कि तू पहले आ जाता तो मैं पापी न कहलाता, महात्मा बन जाता। क्यों, भूतार्थ है कि अभूतार्थ है ? भूतार्थ है, सत्यार्थ है, यथार्थ है। ये समयसार आज नहीं सुनना, आज रख लेना। जब मन अशुभ में जाये, तब खोलना। समयसार यही है । हे मुमुक्षु ! आज के लिए नहीं सुनना। जिस दिन अंतिम हिचकियाँ आ रही हों, जब हाय-हाय कर रहा हो, तब कहना कि चिद्रूप को देख । पर्याय की हिचकियाँ अस्सी, नब्बे साल के बाद भर पाती हैं, पर तेरे शुभ कर्म की हिचकियाँ उसी दिन भर गई, जब तू ब्रह्म को छोड़ने जाता है। किसी को मत निहारो, पूछो हृदय से । पर्याय की हिचकियाँ अंतिम दिन निकलेंगी, पर शुभ परिणामों की हिचकियाँ उसी दिन निकल गईं जिस दिन तूने शील भंग किया था। चेहरा खोखला हो गया है। काम-भोग-बंध-कहा है। पाँच इन्द्रियाँ विभक्त हैं। स्पर्शन व रसना ये दो काम-इन्द्रियाँ हैं, और चक्षु, घ्राण, श्रोत्र ये भोग-इन्द्रियाँ हैं। दो काम इन्द्रियाँ, तीन भोग इन्द्रियाँ हैं । काम-भोग बड़ा सुलभ है। आत्मनिंदा करो, किसी को मत निहारो, गर्दा करो। किसी को पढ़ाना भी नहीं पड़ा, सिखाना भी नहीं पड़ा। तीन के कारण विलख रही मेरी आत्मादृष्ट, श्रुत, अनुभूत । तीनलोक का नाथ पंचपरावर्तन कर रहा है। क्यों ? दृष्ट, श्रुत, अनुभूत । देखा तो वही देखा । धिक्कार हो। आँखें फोड़ी, पैसे दे देकर फिल्म देखने जाता है। अपने जीवन को बरबाद करने के लिए, कैसे खोटे-खोटे चित्र निहारते हो । चारित्र को www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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