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________________ (10) अपना सौभाग्य मानते हैं । इस ग्रन्थ में हर पृष्ठ पर कुछ वाक्य या वाक्यांश सूक्तियों की तरह है । कुछ सूक्तियाँ तो ऐसी है, जिनको शीर्षक बनाकर पूरे-पूरे लेख लिखना सकते हैं। उदाहरण के लिए कुछ सूक्तियाँ दृष्टव्य हैं - • परमात्मा त्रैकालिक नहीं होता, लेखिन आत्मा त्रैकालिक होता है ---- परमात्मा तो पर्याय है, द्रव्य तो आत्मा है । • पाप में डूबा जीव तोउबर जाता है, परन्तु क्रियाओं में डूबा जीव नहीं उबर पाता। • इस भ्रम को निकाल देना कि मैं त्रैकालिक शुद्ध है । शक्तिरुप तो हूँ, परन्तु अभिव्यक्ति रुप नहीं हूँ। • जब तक विशेषण चल रहे है, तब तक विशिष्ट नहीं हो पाओंगे । • समय को समक्तना है तो हे योगीश्वर ! समय को समझना, समय पर समझना, समय के लिए समझना और समय में समझना । • जो - जो परनिमित्त है, वे सब मेरे आत्मधर्म मे परे है । • जितने -जितने व्याख्यान है, वे सब परसमय है। जो व्याख्यानातीत है, वह स्वसमय है । ये तो नमूने मात्र है, अन्यथा तो साढ़े तीन सौ पृष्ठो की इस 'समयदेशना' में ऐसी सारगर्भित एवं गूढार्थपोषक सूक्तियों की 'सतसर' तैयार की जा सकती है । पूज्य आचार्यश्री के करुणापूरित हृदय से सजित यह कृति सबका मंगल करे, इस भावना के साथ पूज्यश्री के चरणो में भाव -विगलित शतश नमोस्तु । - नरेन्द्र प्रकाश जैन १०४, नईबस्ती, (गुरुचरण चंचरिक) फीरोजाबाद (उ.प्र.) मो. ०९३५८५८१००८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004059
Book TitleSamaysara Samay Deshna Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishuddhsagar
PublisherAnil Book Depo
Publication Year2010
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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