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क्रमिक विवक्षा और दोनों समयों पर सामूहिक दृष्टि होने पर घटादि वस्तु स्याद् नास्ति अवक्तव्य का विषय बनती है। यह दूसरे और चौथे भंग के संयोग से बना है।
7. स्याद् अस्ति नास्ति अवक्तव्य - यह तीन भंगों के संयोग से बना है। वस्तु कथंचित् है भी, नहीं भी है, फिर भी पूर्ण रूप में अवक्तव्य है। प्रथम समय में स्वचतुष्टय के अस्तित्व की, द्वितीय समय में पर चतुष्टय के नास्तित्व की और तृतीय समय में युगपत् स्व-पर चतुष्टय रूप अवक्तव्य की विवक्षा होने पर और तीनों समय पर सामूहिक दृष्टि होने पर घटादि वस्तु स्याद्-अस्ति-नास्तिअवक्तव्य रूप सप्तम भंग का विषय होती है।
इसीको एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट रूप हो समझने का प्रयास करें।
1. स्याद् अस्ति - यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है।
2. स्याद् नास्ति - यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है।
3. स्याद् अस्ति नास्ति - यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते है तो आत्मा नित्य है और पर्याय की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है।
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4. स्याद् अवक्तव्य - यदि द्रव्य और पर्याय दोनों की अपेक्षा से एक साथ विचार करते है तो आत्मा अवक्तव्य है। क्योंकि दो भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से दो अलग-अलग कथन हो सकते हैं किन्तु एक कथन नहीं हो सकता।
5. स्याद् अस्ति अवक्तव्य - यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है किन्तु यदि आत्मा की द्रव्य पर्याय दोनों या अनन्त अपेक्षाओं की दृष्टि से विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य है।
6. स्याद् नास्ति अवक्तव्य - यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है किन्तु यदि अनन्त अपेक्षा की दृष्टि से विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य हैं।
7. स्याद् अस्ति-नास्ति - अवक्तव्य - यदि द्रव्य दृष्टि से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है और पर्याय दृष्टि से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है किन्तु यदि अपनी अनन्त अपेक्षाओं की दृष्टि से विचार करते है तो आत्मा अवक्तव्य है।
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