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दसपूर्वधारी मुनि अवश्य समकित होने से उनके द्वारा निर्मित शास्त्र भी सम्यक् श्रुत ही हैं। दस पूर्व से कम ज्ञान वालों का कथन सम्यक् श्रुत भी हो सकता है और नहीं भी हो सकता। यदि वह शास्त्रों से अविरूद्ध है तो सम्यक् श्रुत और विरूद्ध है तो मिथ्याश्रुत है।
तुम्हारी भूत-बाधा अभी दूर करता हूँ।
मिथ्या दृष्टि
6. मिथ्या श्रुत - अल्पबुद्धि वाले मिथ्यादृष्टियों द्वारा अपनी इच्छानुसार बुद्धि की कल्पना से रचे हुए, गुमराह करने वाले ग्रंथ मिथ्याश्रुत हैं।
7. सादिश्रुत - जिस श्रुत की आदि-प्रारम्भ हो, वह सादिश्रुत है।
8. अनादि श्रुत - जिस श्रुत की आदि न हो वह अनादि श्रुत है।
9. सपर्यवसित श्रुत - जिस श्रुत का अन्त हो, उसे सपर्यवसित कहते हैं।
अवधिज्ञान के भेद -
10. अपर्यवसित श्रुत - जिस श्रुत का अन्त न हो, उसे अपर्यवसित कहते हैं।
11. गमिक श्रुत - जिन शास्त्रों में पाठ सरीखे (एक जैसे) होते हैं, वे गमिक श्रुत कहलाते हैं। इसमें आदि मध्य या अन्त में कुछ परिवर्तन के साथ शेष सारा पाठ एक जैसा होता है।
12. अगमिक श्रुत - जिन शास्त्रों के पाठ एक सरीखे नहीं होते हैं, वे अगमिक श्रुत कहलाते हैं।
13. अंगप्रविष्ट श्रुत - तीर्थंकर परमात्मा अर्थ रूप उपदेश देते हैं। उस अर्थ रूप उपदेश को गणधर सूत्र रूप में गूंथ है, वे सूत्र अंगप्रविष्ट श्रुत कहलाते हैं।
14. अनंगप्रविष्ट श्रुत- भगवान की वाणी के आधार पर विशिष्ट ज्ञानी आचार्य, स्थविर आदि जो कम से कम दस पूर्वधारी हों, वे जो ग्रंथ की रचना करते हैं वे अनंगप्रविष्ट कहलाते हैं।
अवधिज्ञान
अवधि का अर्थ है - सीमा, मर्यादा। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादा सहित इन्द्रिय और मन की सहायता बिना सीधे आत्मा के द्वारा मात्र रूपी पदार्थों को जानने वाला ज्ञान अवधिज्ञान है। यह ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण रूप है।
अवधिज्ञान के मुख्य दो प्रकार हैं :
1. भव प्रत्यय अवधिज्ञान और 2. क्षयोपशमिक या गुणप्रत्यय अवधिज्ञान
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अवधि (ज्ञान प्रमाण