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विशिष्ट गुणों से दुष्कर क्रिया, व्रताचरण, अभिग्रह, व्याख्यान शैली, कवित्व शैली, विद्धता आदि से धर्म के प्रभाव में वृद्धि करना और धर्म पर लगाये जाने वाले मिथ्या आरोपों को प्रभावपूर्ण ढंग से खण्डन करना प्रभावना नामक दर्शनाचार है।
उपर्युक्त आठों ही दर्शनाचार के नाम से भी जाने जाते है, इन आठ आचारों के द्वारा सम्यग्दर्शन पुष्ट एवं सुशोभित होता है, अतएव सम्यग्दृष्टि जीवों को इन आचारों का पालन करना चाहिए। सम्यग्दर्शन की साधना के छह स्थान
सम्यक्त्व को स्थिर रखने के लिए छह स्थानों का निरूपण किया गया है। वे स्थान इस प्रकार है
1. आत्मा है 2. आत्मा नित्य है 3. आत्मा अपने कर्मो का कर्त्ता है 4. आत्मा स्वकृत कर्मों का भोक्ता है 5. आत्मा मुक्ति प्राप्त कर सकता है 6. मुक्ति का उपाय (मार्ग) है। __इन छह स्थानको को विस्तार से समझकर इनका चिन्तन करने से सम्यक्त्व की स्थिरता होती है। अतः सम्यक्त्व के यथार्थ स्वरूप को जानकर अपने जीवन में से मिथ्यात्व का त्याग कर सभी आत्माएँ क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करें।
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