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________________ साधु-साध्वी के आगमन पर खड़ा होना, स्वागत के लिए सामने जाना, उनके आने पर हाथ जोडना, उन्हें आसन प्रदान करना, उनके आसन ग्रहण करने पर स्वयं बैठना, उनका विनय, बहुमान आदि करना भक्ति है। ये पाँच गुण शरीर के भूषणों के समान सम्यक्त्व को शोभायमान करनेवाले होने से श्रेष्ठ समकित भूषण कहलाते हैं। रक सम्यक्त्व के पाँच दूषण (अतिचार) जैसे वात, पित्त, कफ आदि दोषों के उद्भव से शरीर रूग्ण होता है, वैसे ही सम्यक्त्व में लगने वाले दोषों से सम्यक्त्व दूषित हो जाता है। ये दूषण पाँच बताये गये हैं - ___ 1. शंका, 2. कांक्षा, 3. विचिकित्सा, 4. मिथ्यादृष्टि प्रशंसा और 5. मिथ्यादृष्टि संस्तव 1. शंका - वीतराग या अर्हत् के कथनों पर शंका करना उनकी यथार्थता के प्रति संदेहात्मक दृष्टिकोण रखना। 2. कांक्षा - अन्य दर्शन के आडम्बर या प्रलोभन से आकर्षित होकर उस दर्शन को स्वीकार करने की इच्छा या आकांक्षा करना। विचिकित्सा 3. विचिकित्सा - धर्म के फल में संदेह करना विचिकित्सा है। धर्म क्रिया करते करते इतना समय हो गया अभी तक तो उसका कोई फल नहीं मिला, क्या पता आगे भी फल मिलेगा या नही? इस प्रकार का मन में विचार करना विचिकित्सा दोष है। रोगी एवं ग्लान व्यक्तियों के प्रति घृणा रखना तथा पंच महाव्रतधारी महामुनियों के देह की मलिनता आदि देखकर घृणा करना भी विचिकित्सा है। साधु टेषभाव S hiwidepsicomicsaisa •roinson 14prior
SR No.004055
Book TitleJain Dharm Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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