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________________ लिए श्रेयस्कर है।" पर दुराग्रही नमुचि नहीं माना तब विष्णुकुमार मुनि ने अपने लिए केवल तीन पैर रखने के लिए जगह माँगी । नमुचि मंत्री ने कहा - "तुम महापदम चक्रवर्ती के भाई हो इसलिए मैं तुम्हें तीन पैर रखने की जगह देता हूँ।” विष्णु मुनि ने अपने शरीर को इतना विराट् बनाया कि दो पैर से ही सम्पूर्ण मानव क्षेत्र को नाप लिया और जब तीसरे पैर को रखने के लिए भूमि माँगी तो नमुचि मंत्री का मस्तिष्क चकरा गया। वह चरणों में गिर पड़ा। वह अपने अपराधों की क्षमा माँगने लगा। जैन साधु संघ की रक्षा करने के कारण, उसी दिन से रक्षा पर्व विश्रुत हुआ । माना जाता है श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के दिन यह घटना घटी। इसलिस रक्षा बंधन के रूप में यह पर्व मनाया जाने लगा। रक्षा बन्धन के पवित्र दिन परनारी मात्र को बहन मानकर उसकी अस्मिता की, उसकी पवित्रता की रक्षा करने का एक दृढ़ संकल्प सभी भाइयों को करना चाहिए। पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन में जो संघर्ष है उन संघर्षो को समाप्त करने के लिए तथा सुख और शांति से राष्ट्र को आगे बढाने के लिए हमें पर्व के अन्तर हृदय को समझना होगा, जो पर्व की आत्मा है, धागा तो धागा ही रहता है, उस सामान्य धागे का कोई महत्व नहीं है, राखी के रूप में जब वह धागा बँधता है तो वह धागा नहीं रहता अपितु स्नेह-सूत्र बन जाता है। जिसने आपके हाथों में राखी बाँधी है, उसके जीवन का दायित्व आप पर है, केवल सोना-चाँदी के टुकडे देकर आप चाहें कि मैं उस उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाऊँगा तो यह नहीं हो सकता। जो उच्च दायित्व आपने ग्रहण किया है उसे ईमानदारी के साथ निभायेंगे तभी रक्षा सूत्र की सार्थकता है, यही है इस पर्व की आत्मा । 110 www.jainelibrary.org
SR No.004055
Book TitleJain Dharm Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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