SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ।। सुकृत अनुमोदनम् || दि. 21.2.2012 अर्ह जैन धर्म दर्शन भाग 3 व 4 के काफी अंशों के अनुशीलन का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ। डॉ. निर्मलाजी का श्रम व समर्पण इसमें स्पष्ट परिलक्षित होता है। संकलन, संयोजन व प्रस्तुति तीनों ही सुंदर एवं उपयोगी बने है। समग्र आलेखन को शास्त्र अविरुद्ध बनाने के लिए भी लेखिका ने जो सतत् जागरूकता पूर्वक प्रयास किया है वह भी साधुवाद के पात्र है और मैंने पाया कि उनका यह प्रयास सफल रहा है। आदिनाथ जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में हो रहा यह प्रयास अपने आप में अलग ही तरह का है। मैं आशा करता हूँ कि पूर्व के भागों की तरह यह भाग भी व्यापक लोक चाहना को प्राप्त करेगा एवं धर्म तत्व के जिज्ञासुओं की जिज्ञासा परितृप्त कर उन्हें आत्मकल्याण के मार्ग में आगे बढ़ने में सहायक सिद्ध होगा। समग्र ट्रस्ट मंडल एवं लेखिका सभी को उनकी इस ज्ञान-ज्योत की यात्रा के सुंदर पूर्णाहुति हेतु अंतः करण से आशीर्वाद देता हूँ। प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि इस समग्र पाठ्यक्रम के भावी संस्करण और भी श्रेष्ठता को प्राप्त करें। पं. अजयसागर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy