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________________ अंजणा या। सभी तरह से अपमानित करता हआ बदबदाया- अभी तक यह कलटा ने मेरा पीछा नहीं छोडा है। ऐसे समय में भी अपशकुन करने चली आयी। अंजना आँखों में आँसु बहाती हुई महल में चली गई, फिर भी पति के प्रति उसने कोई अनिष्ट TUUUUUUN कामना नहीं की, केवल अपने भाग्य को ही दोष देती रही। पवनंजय वहाँ से आगे चले। मार्ग में एक वृक्ष के नीचे रात्री विश्राम किया। अधिक तनाव होने से रात का पहला प्रहर बीतने पर भी नींद नहीं आ रही थी। लेटे - लेटे करवटें बदलते रहे। उस समय एक चकवा - चकवी का जोडा अलग अलग टहनियों पर आ बैठा था। चकवी अपने साथी के वियोग में बुरी तरह करुण क्रन्दन कर रही थी। उसका दिल बहलाने वाला आक्रन्दन सुनकर पवनंजय के दिल में उथल - पुथल मच गयी। चिंतन ने मोड लिया। सोचा एक रात के प्रिय - वियोग में ही इस चकवी की यह दशा है तो उस बेचारी अंजना पर क्या बीतती होगी, जिस निरपराधि का बारह वर्षों से मैंने बिल्कुल बहिष्कार कर रखा है ? मेरा मुँह भी उसने पूर्णत नहीं देखा है। अतः मुझे उससे मिलना चाहिए। पवनंजय ने अपने मित्र प्रहसित से सारी मनोव्यथा कही। मित्र ने भी उसकी पवित्रता में कोई सन्देह नहीं करने को कहा तथा यह भी कहा - इतना निरादर सहकर भी आपके प्रति कल्याण कामना लिए शकुन देने आयी, इससे अधिक और उसके सतीत्व का क्या प्रमाण होगा ? मित्र को साथ लेकर पवनंजय छावनी से विद्या बल द्वारा आकाशमार्ग से चल पडे, और अंजना के महल में एक प्रहर में ही पहुँच गये। अंजना उन्हें देखते ही हर्षित हो गई। वह खुशी के आँसू बहाने लगी। पवनंजय ने अतीत को भूल जाने के लिए कहा। शेष रात्री महलों में रहकर पवनंजय प्रातःकाल छावनी में जाते समय अपने हाथ की अंगूठी निशानी के रुप में देकर चले गये। सात महीने युद्ध में लग गये, पवनंजय वापस नहीं आये । पीछे से अंजना को गर्भवती देखकर उसकी सास केतुमती आग बबूला हो उठी। उसे व्यभिचारिणी कलंक दे दिया गया। अंजना ने बहुत विनम्रता से सारी बात कही, पर माने कौन ? प्रह्लाद ने देश-निष्कासन का आदेश दे डाला। पवनंजय जब तक नहीं आ जाये, तब तक अंजना को वहीं रखने को कहा, परंतु उसकी इस प्रार्थना को भी स्वीकार नहीं किया गया। काले कपडे पहनाकर काले रथ में बिठाकर केतुमती ने अंजना को उसके पीहर महेन्द्रपुर की ओर वन में छोड आने के लिए सारथी को आदेश दे दिया। सारथी भी उसे जंगल में छोड आया। अंजना महेन्द्रपुर की ओर चली। अंजना अपनी सखी तुल्य दासी वसंततिलका को लेकर पीहर की ओर बढी। कष्ट के समय पीहर में आश्रय पाने में अंजना संकोच कर रही थी, पर वसंततिलका का आग्रह से वहाँ पहुँची। काले वस्त्रों में अंजना को देखकर, माता - पिता, भाई भाभीयाँ, यहाँ तक की नगर निवासी भी 126 For Personal & Private Use only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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