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मायाए - माया से हुई। लोभाए - लोभ से हुई। सव्वकालिआए - सब काल संबंधी। सव्वमिच्छोवयाराए - सब प्रकार के मिथ्या उपचारों से। सव्वधम्माइक्कमणाएं - सब प्रकार के धर्म का उल्लंघन करने से। आसायणाए - आशातना जो मे - जो मुझसे। अइयारो - अतिचार। कओ - किया हो, हुआ हो। तस्स - तत् संबंधी खमासमणो - हे क्षमाश्रमण। पडिक्कमामि - प्रतिक्रमण करता हूं। निंदामि - निंदा करता हूं। गरिहामि - गुरु के समक्ष निंदा करता हूँ। अप्पाणं - अशुभ योग में प्रवृत्त अपनी आत्मा को। वोसिरामि - छोड़ देता हूं, त्याग करता हूं।
भावार्थ : (शिष्य कहता है) हे महाश्रमण गुरुदेव! मैं अन्य सब प्रकार के कार्यों से निवृत्त होकर अपनी शक्ति के अनुसार वंदन करना चाहता हूं? मुझे परिमित अवग्रह (साढे तीन हाथ समीप आने) की आज्ञा दीजिये। सब अशुभ व्यापारों के त्यागपूर्वक आपके चरणों को अपने मस्तक से स्पर्श करता हूं। इससे आपको जो कोई खेद कष्ट हुआ हो उसकी मुझे क्षमा प्रदान करें। आप का दिन शुभ भाव से सुख पूर्वक व्यतीत हुआ है ? हे पूज्य! आपका तप नियम, संयम और स्वाध्याय रूप यात्रा निराबाध चल रहे हैं? आपका शरीर, इन्द्रियां तथा नोइन्द्रिय (मन) कषाय आदि उपघात पीड़ा रहित हैं ? हे गुरुमहाराज! सारे दिन में जो कोई मैंने अपराध किया हो उसकी मैं क्षमा मांगता हूं। आवश्यक क्रिया के लिये अब मैं अवग्रह से बाहर आता हूं। दिन में आप क्षमाश्रमण की तेतीस आशातनाओं में से कोई भी आशातना की हो उसकी मैं क्षमा मांगता हूं। और जो कोई अतिचार मिथ्याभाव के कारण हुई आशातना से हुआ हो, मन, वचन, काया की दुष्ट प्रवृत्ति से हुई आशातना से हुआ हो, क्रोध मान, माया लोभ की प्रवृत्ति से हुआ हो अथवा सर्वकाल संबंधी, सर्व प्रकार के मिथ्या उपचारों से अर्थात् कूट कपट से, अष्ट प्रवचन माता रूप सर्वधर्म कार्य के अतिक्रमण के कारण हुई आशातना से हुआ हो, उनसे हे क्षमाश्रमण! आपके समीप मैं प्रतिक्रमण करता हूं, आत्मा की साक्षी से निंदा करता हूं, तथा आपकी साक्षी में मैं उसकी गर्दा करता हूं एवं ऐसी पापमय मेरी आत्मा को मैं वोसीराता हूं-त्याग करता हूं।
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