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अकरणिज्जो - नहीं करने योग्य कार्य।
चउण्हं कसायाणं - चार कषायों के द्वारा। दुज्झाओ - दुर्ध्यान से।
पंचण्हं अणुव्वयाणं - पांच अणुव्रतों का। दुव्विचिंतिओं - दुष्ट चिंतन से।
तिण्हं गुणव्वयाणं - तीन गुणव्रतों का। अणायारो - अनाचार से।
चउण्हं सिक्खावयाणं - चार शिक्षाव्रतों का। अणिच्छिअव्वो - अनिच्छित बर्ताव।
बारस विहस्स - बारह प्रकार के। असावग-पाउग्गो - श्रावक के लिये नहीं करने योग्य| सावगधम्मस्स - श्रावक धर्म। नाणे - ज्ञान में।
जं खंडिअं - जो खंडित हुआ हो। दंसणे - दर्शन में।
जं विराहिअं - जो विराधित हुआ हो। चरित्ताचरित्ते - देश विरति चारित्र के विषय में। तस्स - तत्संबंधी। सुए-श्रुत - शास्त्र के विषय में।
मिच्छा - मिथ्या हो। सामाइए - सामायिक में।
मि दुक्कडं - मेरा दुष्कृत। तिण्हं गुत्तीण - तीन गुप्तियों की। अर्थ : इस सूत्र द्वारा दिन / रात्री संबंधी मन, वचन, काया से श्रावक धर्म में किये हुए पाप की आलोचना है। इसलिए इस सूत्र को बोलते समय उपयोग रखकर स्वयं सारे दिन / रात में जो जो काम किया हो वे सब याद करके शुद्ध अंतःकरण से उनका पश्चाताप करने का है। भावार्थ : ज्ञान, दर्शन देश विरति चारित्र, श्रुत धर्म तथा सामायिक के विषय में मैंने दिन में जो कायिकवाचिक और मानसिक अतिचारों को सेवन किया हो उसका पाप मेरे लिये निष्फल हो। सूत्र विरुद्ध, मार्ग विरुद्ध, आचार्य विरुद्ध तथा कल्प विरुद्ध, नहीं करने योग्य दुर्थ्यांन किया हो, दुष्ट चिंतन किया हो, नहीं आचरण करने योग्य, नहीं चाहने योग्य अथवा श्रावक के लिये सर्वथा अनचित ऐसे व्यवहार से (इनमें से) जो कोई अतिचार सेवन किया हो तत्संबंधी मेरा पाप मिथ्या हो। एवं चार कषाय द्वारा तीन गुप्ति संबंधी, पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, और चार शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार के श्रावक धर्म संबंधी व्रतों में से जो कोई व्रत खंडित हुआ हो अथवा जो कोई इनकी विराधना हुई हो तत्संबंधित मेरा पाप भी मिथ्या हो निष्फल हो।
AWAR-95
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