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________________ 4666 जिणवरा - जिनेश्वर देव। तित्थयरा मे - तीर्थंकर मुझ पर। पसीयंतु - प्रसन्न हो। कित्तिय-वंदिय-महिया- कीर्तन, वंदन और पूजन किये हुए। जे ए - जो ये। लोगस्स उत्तमा - समस्त लोक में उत्तम। सिद्धा - सिद्ध आरुग्ग-बोहि-लाभं - कर्मक्षय तथा जिनधर्म की प्राप्ति को। समाहिवरं - भावसमाधि। उत्तमं दिंतु - श्रेष्ठ उत्तम दें, प्रदान करें। चंदेसु निम्मलयरा - चंद्रों से अधिक निर्मल, स्वच्छ। आइच्चेसु अहियं पयासयरा- सूर्यों से अधिक प्रकाश करने वाले सागर - वर - गंभीरा - श्रेष्ठ सागर अर्थात् स्वयम्भुरमण समुद्र से अधिक गंभीर। सिद्धा - सिद्धावस्था प्राप्त किये सिद्ध भगवान। सिद्धिं - सिद्धि मम दिसंतु - मुझे प्रदान करें। भावार्थ : चौदह राजलोकों में स्थित संपूर्ण वस्तुओं के स्वरुप को यथार्थ रुप में प्रकाशित करने वाले, धर्म रुप तीर्थ को स्थापन करने वाले, राग - द्वेष के विजेता तथा त्रिलोक पूज्यों ऐसे चौबीस केवल ज्ञानियों की मैं स्तुति करता हूँ ।।1।। __ श्री ऋषभदेव, श्री अजितनाथ, श्री संभवनाथ, श्री अभिनंदन स्वामी, श्री सुमतिनाथ, श्री पद्मप्रभ, श्री सुपार्श्वनाथ, तथा श्री चंद्रप्रभ जिनेश्वरों को मैं वंदन करता हूँ।।2।। श्री सुविधिनाथ जिनका दूसरा नाम पुष्पदंत, श्री शीतलनाथ, श्री श्रेयांसनाथ, श्री वासुपूज्य, श्री विमलनाथ, श्री अनंतनाथ,श्री धर्मनाथ तथा श्री शांतिनाथ जिनेश्वरों को मैं वंदन करता हूँ ।।3।। श्री कुंथुनाथ, श्री अरनाथ, श्री मल्लिनाथ, श्री मुनिसुव्रत स्वामी, श्री नमिनाथ श्री अरिष्टनेमि, श्री पार्श्वनाथ तथा श्री वर्धमान (श्री महावीर स्वामी) जिनेश्वरों को मैं वंदन करता हूँ ।।4।। इस प्रकार मेरे द्वारा स्तुति किये गये, कर्मरूपी मल से रहित और (जन्म) जरा एवं मरण से मुक्त चौवीस जिनेश्वर देव तीर्थंकर मुझ पर प्रसन्न हों ।।5।। जो समस्त लोक में उत्तम है और मन, वचन काया से स्तुति किये हुए हैं, वे मेरे कर्मों का क्षय करें, मुझे जिनधर्म की प्राप्ति कराएं तथा उत्तम भाव - समाधि प्रदान करें।।6।। चंद्रों से अधिक निर्मल, सूर्यों से अधिक प्रकाश करने वाले, स्वयम्भूरमण समुद्र से अधिक गंभीर ऐसे सिद्ध भगवंत मुझे सिद्धि प्रदान करें।।7।। 2034244 0200... . ... .. Oatmeat www.jameliorary.org
SR No.004051
Book TitleJain Dharm Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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