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________________ जीवी की क्रूरता पूर्वक अर्जुन का शरीर छोडकर भाग गया। अर्जुन भूमि पर धडाम से गिर गया। उपसर्ग टला जानकर सुदर्शन श्रावक उठता है। उसने अर्जुन को भी उठाया, जगाया और सद्बोध दिया। संक्षेप में, सुदर्शन की धर्म पर दृढ आस्था थी। इसी कारण वे भीषण उपसर्ग के समय में भी धर्म से विचलित नहीं हुए । फलतः उन्होंने असातावेदनीय के प्रसंग पर सातावेदनीय कर्म बांधा। * असातावेदनीय कर्म बंध के कारण * 1. गुरुजनों की अभक्तिः - माता - पिता, अध्यापक या धर्म गुरुओं का अनादर, अपमान करना। यथोचित सेवा भक्ति न करना। 2. अक्षमा :- छोटी-छोटी बातों पर भी क्रोध, कलह आदि करना, क्षमा धारण नहीं करना। 3. क्रूरता :- हिंसा का आचरण करना, दीन - दुःखी, पीडित - रोगी को देखकर भी करुणा / अनुकंपा का भाव न लाना, मन में क्रूरता रखना। 4. अव्रत :- व्रत - नियम, पकड़ना और वेदना देना त्याग प्रत्याख्यान न करना। अमर्यादित जीवन जीना। 5. अयोग - प्रवृत्ति :- मन - पशओं पर अधिक बोझ डालकर पीड़ा पहंचाना वचन - काया द्वारा अशुभ प्रवृत्ति करना । अर्थात् मन में हिंसक विचार करना हिंसक कठोर वचनों का प्रयोग करना, काया से हिंसा आदि में प्रवृत्त होना। 6. कषाय करना :- क्रोध, मान, माया और लोभ करना। 7. दानवृति का अभाव :- देने का भाव न होना, कंजूसी का आचरण करना 8. धर्म पर दृढता न रखना :- धर्म से चालायमान होना और श्रद्धा का खण्डित हो जाना। __ इस प्रकार असातावेदनीय कर्म दुख का कारण होने से इन्द्रिय विषय का दुःखरुप अनुभव कराता है और प्रतिकूल दुःख के संयोगों को प्राप्त कराता है। 2172 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004051
Book TitleJain Dharm Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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