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________________ ************** सूक्ष्म से सूक्ष्म (अविभाज्य ) काल : समय * काल का स्वरुप समय = ज्ञानियों की दृष्टि में जिसके दो भाग न हो अथवा जो कभी विभाजित न हो सके ऐसे सूक्ष्मतम कालांश को "समय" कहते हैं। कोई शक्तिशाली व्यक्ति अत्यंत जीर्ण वस्त्र को फाड़े उस वक्त एक रेशे के बाद दूसरा रेशा फटने में वैसे असंख्य समय बीत जाते हैं। Jam Education intemational 17 से अधिक क्षुल्लकभव : 7 श्वासोश्वास : 10 कोटाकोटि (करोड़ असंख्यात समय : एक आवलिका 256 आवलिका : एक क्षुल्लकभव (निगोद का जीव इतने समय में एक भव पूरा करता है।) एक श्वासोश्वास (स्वस्थ युवान का प्राण) एक स्तोक 7 स्तोक एक लव 77 लव: एक मुहूर्त 3773 श्वासोश्वास : एक मुहूर्त 48 मिनिट : एक मुहूर्त 2 घड़ी : एक मुहूर्त 65536 क्षुल्लकभव : एक मुहूर्त 1,67,77,216 : एक मुहूर्त 30 मुहूर्त : एक अहोरात्र 15 अहोरात्र : एक पक्ष 2 पक्ष एक मास 2 मास एक ऋतु 6 मास एक अयन 12 मास: एक वर्ष 5 वर्ष : एक युग 84 लाख वर्ष : एक पूर्वांग 84 लाख पूर्वां : एक पूर्व 70560 अरब वर्ष : एक पूर्व असंख्य वर्ष : एक पल्योपम करोड़) पल्योपम: एक सागरोपम 10 कोटा कोटी सागरोपम: एक उत्सर्पिणी / अवसर्पिणी 20 कोटा कोटी सागरोपम: एक कालचक्र अनंत कालचक्र : एक पुद्गल परावर्त अनंत पुद्गल परावर्त काल : भूतकाल भूतकाल से अनंत गुण भविष्य काल ******************* 34 *********** Use Only ************ - jainatibrary.org
SR No.004051
Book TitleJain Dharm Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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