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________________ चित्रगति का जीव देवलोक से च्यवकर प्रियदर्शना के गर्भ में जन्मा । उसका नाम अपराजित रखा गया। रत्नावती का जीव जनानदपुर के राजा जितशत्रु की रानी धारिनी के गर्भ से पुत्र रुप में जन्मी । उसका नाम प्रीतिमनी रखा गया वह सब कलाओं से निपुण हुई। महाराजा जितशत्रु ने पुत्री के युवा होने पर स्वयंवर पद्धति से उसका विवाह करने का निश्चय किया। स्वयंवर मंडप में राजकुमार अपराजित भी आया। वह प्रीतिमनी के सारे प्रश्नों का उत्तर देकर प्रीतिमती को हरा दिया। प्रीतिमती ने उसके गले में वरमाला डाल दी। कुछ दिन ससुराल रहकर वह अपनी पत्नी के साथ सिंहपुर आ गया। मनोगति व चपलगति के जीव भी माहेन्द्र देवलोक से च्यवकर अपराजित के सुर और सोम नाम से अनुज बंधु बने । राजा हरिनंदी ने अपराजित को राज्य देकर दीक्षा ली और तप करके मोक्ष में गये। एक बार अपराजित राजा फिरते हुए एक बगीचे के अंदर जा पहुँचे। वह बगीचा समुद्रपाल नामक सेठ का था। सुख सामग्रीयों की उसमें कोई कमी न थी। सेठ का लडका अनंगदेव वहाँ क्रीडा में निमग्न था। राजा के आने की बात जानकर उसने उनका स्वागत किया। राजा को यह जानकर परम संतोष हुआ कि मेरे राज्य में ऐसे सुखी और समृद्ध पुरुष हैं। दूसरे दिन राजा जब फिर निकला तब उसने अनंगपाल के मुर्दे को लोग ले जा रहे थे। जीवन की अस्थिरता ने उसको संसार से विरक्त कर दिया। कल शाम को जो परम स्वस्थ और सुख में निमग्न था आज शाम को उसका मुर्दा जा रहा है। यह भी कोई जीवन है ? राजा ने अपने पुत्र पद्मनाम को राज्य सौंपकर अपनी पत्नी व अनुज बंधुओं के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली। * छट्ठा भव ये सभी तपकर कालधर्म को प्राप्त हुए और आरण नामके ग्यारहवें देवलोक में इन्द्र के सामानिक देव हुए। * सातवाँ भव भरत क्षेत्र के हस्तिनापुर में श्री सेन नाम का राजा था। उसकी श्रीमती नाम की रानी थी। उसके गर्भ से अपराजित का जीव च्यवकर उत्पन्न हुआ। उसका नाम शंख रखा गया । बडा होने पर वह बडा विद्वान और वीर हुआ। विमलबोध का जीव भी च्यवकर श्रीषेण राजा के मंत्री गुणनिधि के घर उत्पन्न हुआ । उसका नाम मतिप्रभ रखा गया। शंख और मतिप्रभ की आपस में बहुत मित्रता हो गयी। एक बार राजा श्रीषेण के राज्य में समरकेतु नामका डाकू लोगों को लूटने और सताने लगा। प्रजा पुकार करने आयी। राजा उसको दंड देने के लिए जाने की तैयारी करने लगा। कुमार शंख ने पिता को आग्रहपूर्वक रोका और खुद उसको दंड देने गया। डाकू को परास्त किया। वह कुमार की शरण में आया। कुमार ने उसका सारा धन उन प्रजाजनों को दिला दिया। फिर डाकू को माफ कर उसे अपनी राजधानी में ले चला। रास्ते में शंख का पडाव था । वहाँ रात्री में उसने किसी स्त्री का करुण रुदन सुना। वह खड्ग लेकर उधर चला। रोती हुई स्त्री के पास पहुँचकर उससे रोने का कारण पूछा। स्त्री ने उत्तर दिया- अनंगदेश में जितारी नाम के राजा की कन्या यशोमती है। उसे श्रीषेन के पुत्र शंख पर प्रेम हो गया। जितारी ने कन्या की इच्छा के अनुसार उसकी सगाई कर दी। विद्याधरपति मणिशेखर विद्याबल से उसको हरकर ले चला और वह दुष्ट मुझे इस जंगल में डालकर चला गया। शंखकुमार उस धाय को अपने पडाव में जाने की आज्ञा देकर यशोमती की ढूंढने निकला । एक पर्वत पर उसने यशोमती के साथ विद्याधर को देखा और ललकारा। विद्याधर के साथ शंख 22 Pattisonals Pivate Use Only में से में से www.jainelibrary.org है
SR No.004051
Book TitleJain Dharm Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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