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________________ भगवान पार्श्वनाथ भगवान पार्श्वनाथ का जन्म ईसा पूर्व नवीं दशवीं शताब्दी की घटना है । भगवान महावीर के निर्वाण से 250 वर्ष पूर्व भगवान पार्श्वनाथ का निर्वाण हुआ । * भगवान पार्श्वनाथ के दस भव * पहला भव :- • इस जम्बुद्वीप के भरत क्षेत्र में पोतनपुर नामक नगर था, वहाँ अरविंद राजा राज्य करता था, उसके विश्वभूमि नाम का एक पुरोहित था, राजपुरोहित के दो पुत्र थे कमठ और मरुभूति । - माता - पिता के गुजर जाने पर राजा ने कमठ को पुरोहित पद प्रदान किया, यह स्वभाव से कठोर, क्रूर, लम्पट और शठ था, इधर मरुभूमि प्रकृति का सरल, धर्मज्ञ और श्रावकाचार पालन करने वाला था, कमठ के वरुणा नाम की पत्नी थी और मरुभूति की अत्यंत रूपवती वसुंधरा नाम की पत्नी थी। ********* ********* मरुभूति की अनुपस्थिति में कमठ ने उसकी पत्नी वसुंधरा से प्रेम संबंध जोड़ लिया । मरुभूति को इस बात का पता चला तो उसने राजा से शिकायत की। राजा ने कमठ को अपमानित कर देश से निकाल दिया। अपमानित कमठ ने मरुभूति के प्रति क्रोध की गाँठ बांध ली और वह जंगल में जाकर संन्यासी वेश में रहने लगा। एक समय कमठ पोतनपुर के पास एक पर्वत पर आकर आतापना करने लगा । मरुभूति ने विचार किया कि यह मेरा बडा भाई है, मेरे सख्त विरोध से दुःख के कारण तापस हो गया है, अतः मैं उससे नमन पूर्वक क्षमा मांग लू, यह सोच कर मरुभूति ने एकान्त में पैरों में पडकर क्षमा मांगी, इसके बदले उस दुष्ट कमठ ने अपने अनुज (छोटे भाई) पर मारने के लिए एक शिला उठाई, और उसपर फेंकी, जिससे मरुभूति का सिर फट गया व पीडा से व्याकुल हो चटपटाने लगा और आर्तध्यान में मर गया । * दूसरा भव :- मरुभूति का जीव विन्ध्याचल की अटवी में सुजातोरु नाम का हाथी हुआ, कमठ मरकर इसी वन में कुर्कुट पक्षी के समान आकृति वाला उड़ता सर्प हुआ, इधर अरविंद राजा ने कमठ मरुभूति का स्वरुप जानकर संसार की असारता समझ दीक्षा अंगीकार कर ली। अरविंद राजर्षि एकान्त सरोवर की पाल पर जाकर काउसग्ग ध्यान में खडे थे, उस वक्त सुजातोरु हाथी अपनी हथनियों के परिवार सहित वहाँ पर जल पीने आया । मुनि को निहार कर पहले तो हाथी उन्हें मारने के लिए झपटा, पर दूसरे ही क्षण वह विचारने लगा कि यह तो पूर्व परिचित सा लगता है। उस ही वक्त उसको जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, अपना पूर्व भव जाना। हाथी ने सूँड पसार कर चरणों में नमस्कार किया, मुनि महाराज ने भी अपने ज्ञान से मरुभूति का जीव जान कर उसको प्रतिबोध दिया । हाथी ने श्रावक Jain Education International POP sona & Phirate use Unity -
SR No.004051
Book TitleJain Dharm Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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