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________________ PRODAAAAAAAAARAM J6666666666666 अपना शरीर भी उस समय सहायक नहीं होता। केवल अपने अच्छे-बुरे संस्कारों (पुण्य-पापकर्मों) का बोझ लादे हुए जीव परवश यहां से उठ जाता है। एकमात्र धर्म ही मनुष्य का साथी बनता है, अन्तिम समय में। अगर अपने जीवन में धर्माचरण किया हो तो उसके कारण अन्तिम समय में मनुष्य प्रसन्नता से संतुष्ट होकर इस संसार से विदा होता है। सर्वप्रथम श्रावक अपने जीवन को सरल एवं सुशील बनाता है। स्वयं के अंदर विद्यमान कुटेवो को दूर करने का प्रयास करता है, और यदि विद्यमान न हो तो उसके जीवन को हमेशा उन कुटेवो से बचाने को तत्पर रहता है। इसी कुटेवो की कड़ी में गिने जाते है - 'व्यसन।' . AAAAAAAAAAN 73 . "For Personal & wale use only wwwaineribrary.org
SR No.004050
Book TitleJain Dharm Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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