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________________ जैन सूत्रों में सभी तीर्थंकरों के पंच कल्याणक का उल्लेख मिलता है : 1. च्यवन कल्याणक मनुष्य जन्म धारण करने हेतु स्वर्ग ( आदि) से आत्मा का प्रस्थान 'च्यवन कल्याणक' कहलाता है। इसी समय उनकी माता चौदह शुभ स्वप्न देखती है। त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भप्रत्यारोपण की घटना का संबंध सिर्फ भगवान महावीर के जीवन से ही है। - ******** 2. जन्म कल्याणक - माता के गर्भ से जन्म ग्रहण करना । जन्म के समय छप्पन दिशाकुमारियां आकर सूतिका कर्म करती हैं। सौधर्मेन्द्र अपनी देह के पांच रूप बनाकर तीर्थंकर शिशु को मेरु पर्वत पर ले जाकर उनका जन्म अभिषेक जन्मोत्सव मनाते हैं। 3. दीक्षा कल्याणक - तीर्थंकर जब गृह त्याग कर दीक्षा ग्रहण करते हैं तब देव मनुष्य सभी उत्सव के रूप में उनकी विशाल शोभायात्रा निकालते हैं। और फिर तीर्थंकर भगवान सर्व आभूषण आदि सांसारिक वस्तुओं का परित्याग कर स्वयं के हाथ से अपने केशों का लुंचन (पंचमुष्टि लोच) करते हैं। 4. केवलज्ञान कल्याणक - तप ध्यान संयम की उत्कृष्ट साधना द्वारा चार घाति कर्म का क्षय करके लोकालोक प्रकाशी निराबाध केवलज्ञान, केवलदर्शन की प्राप्ति होने पर देव, देवेन्द्र, मानव, पशु, पक्षी आदि सभी भगवान के दर्शन करने आते हैं। समवसरण की रचना कर भगवान का केवल महोत्सव मनाया जाता है। 5. निर्वाण कल्याणक - समस्त कर्मों का नाश कर तीर्थंकर देव देह मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होते हैं। तब वह देह विसर्जन 'निर्वाण कल्याणक' के रूप में मनाया जाता है। 41 www.jainelibrary.org
SR No.004050
Book TitleJain Dharm Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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