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________________ ********** मूल-गाथा पंचिंदिय-संवरणो, तह नवविह-बंभचेर-गुत्ति-धरो । चउविह- कसाय - मुक्को, इअ अटारससगुणेहिं संजुत्तों ||1|| पंच- महत्वय-जुत्तो, पंचविहायार - पालण - समत्थो । पंच-समिओ ति-गुत्तो, छत्तीसगुणो गुरु मज्झ ||2|| सूत्र - परिचय मूल पंचिंदिय संवरणो तह समस्त धार्मिक क्रियाएं गुरु की आज्ञा ग्रहणकर उनके समक्ष करनी चाहिए, परन्तु जब ऐसा संभव (योग) न हो और धार्मिक क्रिया करनी हो, तब ज्ञान, दर्शन और चारित्र के उपकरणों में गुरु की स्थापना करके काम शुरू किया जा सकता है । ऐसी स्थापना करते समय इस सूत्र का उपयोग होता है। अर्थ णवविहबंभर गुत्तिधरो चउव्विह कसायमुक्को इअ अठारस गुणेहिं संतो पंचमहव्वयजुत्तों पंचविहायार पालण समत्थो पंच-समिओ तिगुत्तो छत्तीस-गुणों 2. पंचिंदिय सुत्तं (गुरु-स्थापन - सूत्र ) मज्झ गुरु पांच इन्द्रियों को वश में करने वाले में से है न ने है तथा नव प्रकार के ब्रह्मचर्य की गुप्तियों को धारण करने वाले चार प्रकार के कषाय से मुक्त इन अठारह गुणों से संयुक्त सहि पांच महाव्रतों से युक्त पांच प्रकार का आचार पालने में समर्थ पांच समिति वाले गुप्तवा (इस प्रकार) छत्तीस गुणों वाले साधु मेरे गुरु हैं। भावार्थ - पांच इन्द्रियों के विषय विकारों को रोकने वाले, ब्रह्मचर्य व्रत की नौ प्रकार की गुप्तियों को नौ वाड़ों को धारण करने वाले, क्रोध आदि चार प्रकार के कषायों से मुक्त, इस प्रकार अठारह गुणों से संयुक्त || 1 || ************ अहिंसा आदि पांच महाव्रतो से युक्त, पांच आचार के पालन करने में समर्थ, पांच समिति और तीन गुप्ति के धारण करने वाले अर्थात् उक्त छत्तीस गुणों वाले श्रेष्ठ साधु मेरे गुरु हैं ||2|| 96 www.jameibrary.org
SR No.004050
Book TitleJain Dharm Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2010
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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